Tags:
Replies are closed for this discussion.
मेरी समझ में यहाँ बात भारतीयता की आत्मा की है I हम भारतीय क्यों हैं क्या ये हम बता सकते है ? पूरे भारत को एक संस्कार ,संस्कृति में नहीं बाँधा जा सकता फिर भी हम सब भारतीय हैं I हाँ हम ही अक्सर अपनी इस आत्मा को नहीं पहचान पाते और उसे दुःख पहुंचाते हैं वरना किसी बाहर वाले की हिम्मत नहीं है I शायद ये ही मर्म हे इस कथा का , सादर
बहुत शानदार प्रयास हुआ है आदरणीय विजय शंकर जी। दाद कुबूल कीजिए।
प्रदत्त विषय पर अच्छी रचना , बधाई आपको | इसको लघुकथा में ढाला जाता तो और बेहतर रहता , सादर .
आदरणीय विजय शंकरजी
भारत के अलावा हर देश तारीफ के काबिल है। और आपने भी तारीफ की । जरा हम सोचें कि वे क्यों तारीफ के काबिल हैं , वे हमारे जैसे नकलची क्यों नहीं बने। ...........
1.... बतलाइये कितने देश धर्म निरपेक्ष हैं।........ कोई नहीं .... वे हमारी तरह बेवकूफी कर धर्म निरपेक्ष राष्ट्र नहीं बने ...... पाकिस्तान बन जाने के बाद हमें ध्रर्म निरपेक्ष नहीं होना था।
2.... वे हमारी तरह अँग्रेजी या विदेशी भाषा को ज़्यादा महत्व नहीं दिये। पढ़ते ज़रूर हैं पर उन देशों में वह दूसरे या तीसरे दर्जे की भाषा बनकर रह गई। और हम गँवार , देश द्रोही की तरह हिंदी को छोड़ उस अँग्रेजी को मातृ भाषा और राष्ट्र भाषा बना रहे हैं।
उपरोक्त दो में ही आपकी बुनियाद का समाधान है।
सादर
आदरणीय डॉ विजय शंकर जी, माफ़ कीजियेगा किन्तु आपकी प्रस्तुति मुझे किसी आलेख का अंश लगा, सादर,
लघुकथा – बुनियादी संस्कार
“पासपोर्ट की जाँच करवाने गया है. थोड़ी देर में अमेरिका रवाना हो जाएंगे. मगर यूं तक नहीं कहा है कि मैंने अपने हिस्से का मकान बेच दिया है.” पत्नी ने देवर पर चिढ़ते हुए कहा.
“अरे तू जाने दे. उस के हिस्से का मकान ही तो बचा था. हमारे हिस्से का मकान तो हम पहले ही बेच चुके है.”
“वह मकान पिताजी के केंसर के इलाज के लिए बेचा था. वे उस के भी पिताजी है.”
“तो क्या हुआ ?”
“लोग सही कहते है, विदेशों में जा कर लोग अपने मातापिता और अपने कर्तव्य को भूल जाते हैं .”
“हो सकता है. तेरी बात सही हो. या उस की कोई मजबूरी रही हो. देख. वो आ रहा है. चुप हो जा.”
उस ने आते ही दोनों के चरण स्पर्श किए और कागज का टुकड़ा पकड़ा कर चल दिया.
उस में लिखा था, “ मैं जा रहा हूँ. आप मुझे याद करते रहिएगा और मैं आप को. और हाँ. आप यहाँ आनंद से रहिएगा और मैं वहां .” जिसे पढ़ते ही पतिपत्नी के मन में एक ही सवाल उठा था, ‘ वह कौन था ? जिसे मकान दिखाते समय इस ने दलाल से कहा था कि मकान की रजिस्ट्री कर के मकान मालिक को दे देना .”
------------------------------
(मौलिक और अप्रकाशित )
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |