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आदरणीय कांता रॉय जी, आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मूल्यों में बडा भारी परिवर्तन आया है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति आत्मकेंन्द्रित हो गया है। जिसका दुष्परिणाम यह हुआ कि सारे मानवीय और आत्मीय रिश्ते अर्थाश्रित हो गये। अपनी लघुकथा के माध्यम से आपने इस नये परिवेश ने जो नयी मूल्य-दृष्टि विकसित की उसको ध्यान में रख अत्यंत नवीन विषय का प्रवरण करते हुए एक प्रभावोपादक व विचारोतेज्जक कथा की रचना की जिसके लिए आपको हृदय से शुभकामनाएं निवेदित हैं । सादर
अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीया कान्ता जी। नारी सशक्तीकरण को शब्द देती इस लघुकथा के लिए दाद कुबूल कीजिए।
आ कांता जी बहुत खूब कथा कही है आपने बधाई इस सार्थक रचना के लिए
वर्चस्व चाहे स्त्री का हो या पुरुष का , उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता , इस लिहाज़ से आखिरी पंक्ति इस रचना को कमज़ोर करती है | थोड़ा अटपटा भी लगा कथा पढ़ते हुए कि जो औरत सर से जलावन का गट्ठर उतार रही है वो गर्भनिरोधक की बात करेगी भी और वो भी इस तरह से | बहरहाल इस बढ़िया प्रयास के लिए बधाई आदरणीया कांता रॉय जी.
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