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आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी लघुकथा में निहित भावों पर आपकी प्रशंसात्मक शब्दों का हार्दिक शुक्रिया।
आदरणीय सुशील सरना सर, एक कमज़ोर बुनियाद को जिस तरह से आपने शाब्दिक किया है, चकित हूँ. कथानक शब्द दर शब्द जैसे आगे बढ़ता है और चरम पर झटका भी मिलता है. यानी सामान्य सी लगने वाली इस अद्भुत लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई. सादर
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी आप जैसे गुणीजनों से लघु कथा के मर्म को स्वीकृति मिलना रचनाकार के प्रयासों को बल देता है। आपकी इस आत्मीय प्रशंसा का तहे दिल से शुक्रिया।
आदरणीय सुशील सरना सर, मेरे कथन का अनुमोदन कर मेरा मान बढाने के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय सुशील जी ,बढ़िया कथा बनी . पुत्र जरूर सुपुत्र ही है जो माँ को अपने पास रखा हुआ है .रही बात साड़ी की ,हो सकता है आर्थिक स्तिथि ऐसी ना हो कि दोनों के लिए आ सके .उसने पलंग पर बैठी माँ के चरण छुए ,ये तो बुनियादी संस्कारों वाली बात हुई .
आदरणीया रीता गुप्ता जी लघुकथा पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। क्षमा सहित आदरणीय क्या मात्र माँ को अपने पास रख लेने से पुत्र के सारे कर्तव्य पूर्ण हो जाते हैं ? रही बात साड़ी की तो बात साड़ी की नहीं थी बात थी प्रमोशन पर पत्नी याद रही माँ नहीं। यहां बात आर्थिक स्थिति की नहीं बात भाव की है। खैर ये विवाद का विषय नहीं अपनी अपनी नज़र अपना अपना ख्याल। आपकी प्रतिक्रिया और विचारों का हार्दिक आभार.
माँ का आशीर्वाद लेने आया , मतलब कुछ संस्कार तो बचे हैं , संवेदनशील रचना के लिए बधाई आ० सुशील शर्मा जी
आदरणीय pratibha pande जी लघुकथा में निहित भावों पर आपकी स्नेहिल स्वीकृति का हार्दिक आभार।
बुनियाद में कमी रह गयी थी , इसी की ओर इशारा करती लघुकथा | बधाई इस रचना के लिए आदरणीय सुशील सरना जी..
आदरणीय vinaya kumar singh जी लघुकथा में निहित भावों पर आपकी स्नेहिल स्वीकृति का हार्दिक आभार।
आ सुशिल शर्मा जी , बहुत ही सुंदर लघुकथा बनी है . बधाई .
आदरणीय Omprakash Kshatriya जी लघुकथा में निहित भावों पर आपकी स्नेहिल स्वीकृति का हार्दिक आभार।
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