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आदरणीय सौरभ सर, लघुकथा का प्रयास आपको सार्थक लगा, जानकार आश्वस्त हुआ हूँ. कथ्य के मर्म के सापेक्ष सटीक और सार्थक प्रतिक्रिया पाकर धन्य हुआ. सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. नमन
बहुत उम्दा आदरणीय मिथिलेश वामनकर भाई जी । बहुत गहन प्रश्न चिन्ह छोड़ती है आपकी यह विचारोत्तेजक लघु कथा । क्या भगवान जी वाकई इत्ते सक्छम है कि वे 'वहीं से बैठ कर इस लोक को चला सके ? क्या वाकई स्वर्ग-नरक की बंदरबांट हो तो नहीं हो रही ? अर्थप्रधान समाज में नैतिक मूल्यों के हो रहे हृास को बहुत बारीकी से उभारा है आपकी इस लघुकथा ने । कथा की अंतिम पंक्ित /लेकिन न चाहते हुए भी मैंने लक्ष्मी के स्वर्ग की परिभाषा को स्वीकार कर लिया।/ तो पूरी कथा को जिस तरह 'परिभाषित' कर रही है वह अद्भुत है। बहुत बहुत शुभकामनाएं इस सद्प्रयास हेतु । खैर ! फीता काटने का तो 'ठेका' आपने ही ले लिया है । सैकिंड लास्ट पैराग्रॉफ में कुछ अनावश्यक डॉटस खटक रहें है और कथा का शीर्षक न होना भी मुझे खटक रहा है । एक छोटा सा सुझाव है- जब लक्ष्मी 'एही लोक' 'इत्ते सकछम' 'उहां' जैसे शब्दों का प्रयोग कर रही है तो उससे स्वर्ग के स्थान पर 'सुरग' जैसा उच्चारण करवाते तो शायद बेहतर रहा, यह केवल सुझाव है। सादर
आदरणीय रवि जी, लघुकथा का प्रयास आपको सार्थक लगा, जानकार आनंदित हूँ. आपकी सराहना मेरे लिए बहुत मायने रखती है. सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. सैकिंड लास्ट पैराग्रॉफ में कुछ अनावश्यक डॉटस को संशोधन द्वारा हटाने का निवेदन कर लूँगा. आपने स्वर्ग को सुरग उच्चारित कराने कहा है ये मैंने भी किया था लेकिन मुझे लघुकथा की रवानगी को प्रभावित सा करता लगा इसलिए सुरग/सरग को हटाकर फिर स्वर्ग नरक कर दिया. पुनः विचार करता हूँ. सादर
// कथा का शीर्षक न होना भी मुझे खटक रहा है । //
आदरणीय रवि जी लघुकथा का शीर्षक 'परिभाषा' ही रखा था किन्तु पोस्ट में नहीं लिखा क्योकिं विषय भी यही था. संकलन के समय शीर्षक भी जोड़ने हेतु निवेदन कर लूँगा. सादर
आदरणीया नीता जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
स्त्री जाति के अन्दर का दर्द! और स्वर्ग नरक की उम्दा परिभाषा प्रस्तुत करती हुई लघुकथा के शिल्प से ओत-प्रोत संवाद सबकुछ सजीव सा! बधाई! आदरणीय मिथिलेश जी!
आदरणीय जवाहर जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
अति सुंदर !! लौकिक स्वर्ग-नर्क को खूब परिभाषित किया आपने आ. मिथिलेश जी ..सादर
आदरणीय सुधीर जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय मदललाल श्रीमाली जी, लघुकथा के प्रयास पर सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार. बहुत बहुत धन्यवाद
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