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आदरणीय मिथिलेश जी आप बीमारी की वजह से पहले जैसा खुल कर लिखा नहीं पाएं है. इस का मलाल रहेगा. आभार आप का .
बहुत सुन्दर आदरणीय ओमप्रगास भाई जी, बहुत सधी व चुस्त कथानक द्वारा आपने प्रदत्त विषय को सार्थक किया । बीच में कहीं विरोधाभास भी नजर आया परन्तु कथा को एक बार फिर पढ़ने से संशय दूर हो गए । 'प्रत्युत्तर' विषय को कृत्स्नवृत करती इस कथा के पर्यसन हेतु हार्दिक शुभकामनाएं । सादर
आदरणीय रवि प्रभाकर जी आप की टिपण्णी पढ़ कर प्रसन्नता हुई. आप ने कथा को चुस्त व सधी हुई कह दिया, मेरे लिए यह सब से बड़ी बात है. आभार आप का .
आदरणीया shashi bansal जी आप ने लघुकथा को बहुत बढ़िया कह दिया तो समझो मेरी मेहनत सफल हो गई .
आदरणीय मदनलाल जी आप की टिपण्णी के लिए आभार. प्यार के नाम पर जहां सारे जहाँ की ईमानदारी मिल जाएगी वहां शोषण भी. यह दुनिया का दस्तूर है. जो अनवरत जारी है.
आजकी अतुकान्त परिस्थितियों के सार्थक और व्यवस्थित विवेचन केलिए, साथ ही, लघुकथा के विन्यास के गठन-निर्वहन के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है, आदरणीय ओम प्रकाशजी.
जिसतरह का खोखला जीवन इस प्रस्तुति का उत्स है, उसमें किसी तथ्यात्मकता की कोई गुंजाइश है भी क्या ? फिलहाल तो नहीं. जब ऐसी परिस्थितियाँ सहज और आम हो चलेंगीं या बनने लगेंगी तो बात कुछ और होगी. अभी तो तामसिक एवं पाशविक ’चाहना’ को संतुष्ट करने का उत्साह ही अधिक हावी है. जिन मान्यताओं को पश्चिमी देश साठ-सत्तर साल पहले भोग कर आज जिसका दंश झेल रहे हैं, उस तथाकथित जीवन-व्यवहार या अनगढ़पन से हमारा समाज आज चकित हुआ सम्मोहित है ! इस विडंबना पर क्या कहा जाये ? और, यह इस टिप्पणी का हेतु भी नहीं. लेकिन इस प्रस्तुति ने इन विन्दुओं के मार्फ़त कुरेदा अवश्य है.
लघुकथा वस्तुतः ऐसी ही विसंगतियों की विवेचना का माध्यम है. आपको हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनाएँ
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय ओमप्रकाशजी.
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