For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मित्रों !

“चित्र से काव्य तक” समूह में आपका हार्दिक स्वागत है | यह प्रतियोगिता आज से ही प्रारंभ की जा रही है, इस हेतु प्रस्तुत चित्र में आज के इस प्रगतिशील आधुनिक समाज के मध्य सैकड़ों साल से चलता आ रहा कोलकाता का रिक्शा दिखाई दे रहा है, आमतौर पर ऐसे रिक्शे पर तीन तीन सवारियां भी देखी जाती हैं, इस कार्य में मान-सम्मान तो दूर अक्सर इन्हें अपमान ही सहन करना पड़ता है, कई सामाजिक संगठनों नें ऐसे रिक्शे बंद कराने की मांग भी की है परन्तु यह सभी रिक्शाचालक इस कार्य को सेवा-कार्य मानते हुए इसे त्यागने को तैयार नहीं हैं |

आइये हम सब इस चित्र पर आधारित अपने अपने भाव-पुष्पों की काव्यात्मक पुष्पांजलि इन श्रमिकों के नाम अर्पित करते हुए उनका अभिनन्दन करते हैं |

 

नोट :- १५ तारीख तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, १६ से २० तारीख तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट करने हेतु खुला रहेगा |


सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना पद्य की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओ बी ओ  के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक रचना ही स्वीकार की जायेगी  |

 

Views: 9232

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

//दो टांगों वाला घोड़ा//

ये दो टांगों वाला घोड़ा  
भागे ज्यादा खाए थोड़ा

भटकन इसकी किस्मत में है
मेहनत इसकी फितरत में है, 
किस्मत ने मुँह इससे मोड़ा !
ये दो टांगों वाला घोड़ा ........

भव्य दुकानों से क्या निस्बत
ग़ुरबत ही है इसकी किस्मत
मरता जाए रोज़ निगोड़ा !
ये दो टांगों वाला घोड़ा .....

सूरज की किरणे झुलसाएं,  
तपती सड़कें पाँव जलाएं,
बनते हैं सब राह में रोड़ा,
ये दो टांगों वाला घोड़ा .....

दर्द ये इसका जाना किसने
मंजिल अपनी ढूंढे, जिसने 
सबको मंजिल पर ला छोड़ा  
ये दो टांगों वाला घोड़ा .....


(यह प्रस्तुति मात्र उपस्थिति दर्ज करने हेतु प्रेषित की है, प्रतियोगिता की प्रविष्टि ना समझी जाए !)

भव्य दुकानों से क्या निस्बत
ग़ुरबत ही है इसकी किस्मत
मरता जाए रोज़ निगोड़ा !
ये दो टांगों वाला घोड़ा .....

वाह .....

आपकी उपस्थिति ही तो ओ बी ओ की रौनक है .....

ज़र्रा-नवाजी का बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरमा हीर साहिबा !

वाह योगी भैया वाह...बहुत ही बढ़िया लिखा आपने...

कुछ और रचना आपकी पढने को मिलती तो अच्छा होता...

शुक्रिया प्रीतो भाई !

वाह वाह वाह , क्या बात कही है आपने ....दो टांगो वाला घोड़ा

 

बेहद मार्मिक भावो को समेटे हुए सृजन है यह, इंसान की बेचारगी और मजबुरिया कभी कभी घोड़ा क्या गदहा बनने पर मजबूर करती है किन्तु कहा जाता है ना कि एक दिन घूरा (कूड़ा) का भी दिन लौटता है, कुदरत सबको एक मौका जरूर देता है |

एक सुंदर अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करे |

बहुत बहुत शुक्रिया गणेश जी !

//भटकन इसकी किस्मत में है
मेहनत इसकी फितरत में है, 
किस्मत ने मुँह इससे मोड़ा !
ये दो टांगों वाला घोड़ा ........//

इस ’भटकन’ और ’मेहनत’ शब्द पर खूब सोचा, योगराजभाई.  और व्यापे ब्रह्माण्ड की एक पूर्ण इकाई के प्रति नत-मस्तक हो गया. मेहनत और भटकन मानवीय-प्रकृति की जीवंतता की समानुपाती हैं. इस लिहाज से किस्मत ने इससे मुँह नहीं मोड़ा होगा, बल्कि मैं कहूँ, किस्मत ने इस इकाई को कालजयी बना दिया है.  कुछ अनगढ़ हो तो समझाइयेगा.

आपकी रचना ने जिस प्रवाह और बिना लाग-लपेट के अपनी बातों को सीधे-सीधे सामने रखा है इसके लिये साधुवाद.

उत्साहवर्धन का बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ भी जी ! आपका इशारा बिलकुल स्पष्ट है, ध्यान रखूँगा, सादर !
दर्द ये इसका जाना किसने 
मंजिल अपनी ढूंढे, जिसने  
सबको मंजिल पर ला छोड़ा   
ये दो टांगों वाला घोड़ा .....
khubsurat sir ji
शुक्रिया रवि भाई !
//ये दो टांगों वाला घोड़ा  
भागे ज्यादा खाए थोड़ा//
वाकई ! यह कालजयी श्रमवीर घोड़े की क्षमता को भी मात दे रहा है ..... 

//भटकन इसकी किस्मत में है
मेहनत इसकी फितरत में है, 
किस्मत ने मुँह इससे मोड़ा !
ये दो टांगों वाला घोड़ा ........//
क्या बात कही है आपने ..........श्रम के इस पुजारी की मेहनत को हम भले ही इसकी फितरत कह लें पर इसका उद्देश्य तो मानव सेवा ही है....

//भव्य दुकानों से क्या निस्बत
ग़ुरबत ही है इसकी किस्मत
मरता जाए रोज़ निगोड़ा !
ये दो टांगों वाला घोड़ा .....//
इन भव्य दुकानों के जूते इसके नंगे पांवों में यदि पहना दिए जाएँ तो संभवतः दो दिनों में ही बोल जायेंगें  वो इसके
पांवों की मजबूती का क्या मुकाबला करेंगें और इन कपड़ों की ऐसी किस्मत कहाँ कि उन्हें ऐसे जाबांज के बदन पर खिलने का अवसर मिले ....इसलिए इसे इन भव्य दुकानों से क्या निस्बत !

सूरज की किरणे झुलसाएं,  
तपती सड़कें पाँव जलाएं,
बनते हैं सब राह में रोड़ा,
ये दो टांगों वाला घोड़ा .....
बिलकुल सही फ़रमाया आपने ! यह सब कुछ हंस हंस कर सहता है बस सिर्फ इसके पसीने की मदद से शीतल पवन ही इसको राहत दे जाती है .......

दर्द ये इसका जाना किसने
मंजिल अपनी ढूंढी, जिसने 
सबको मंजिल पर ला छोड़ा  
ये दो टांगों वाला घोड़ा .....
सच में यह ऐसा शूरवीर है जिसनें खुद तो अपनी मंजिल तलाशी है ही साथ-साथ सभी को उनकी मंजिल पर पहुँचाता है .........
आदरणीय योगी जी आपने इस कविता में इस कालजयी श्रमिक का सारा सारा दर्द उड़ेल दिया है और यह अपने लक्ष्य से बिलकुल भी इधर-उधर नहीं हुई है...........आपको बहुत-बहुत बधाई व साधुवाद ..........

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"ग़ज़ल — 212 1222 212 1222....वक्त के फिसलने में देर कितनी लगती हैबर्फ के पिघलने में देर कितनी…"
33 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"शुक्रिया आदरणीय, माजरत चाहूँगा मैं इस चर्चा नहीं बल्कि आपकी पिछली सारी चर्चाओं  के हवाले से कह…"
1 hour ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी आदाब, हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिय:। तरही मुशाइरा…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"  आ. भाई  , Mahendra Kumar ji, यूँ तो  आपकी सराहनीय प्रस्तुति पर आ.अमित जी …"
4 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"1. //आपके मिसरे में "तुम" शब्द की ग़ैर ज़रूरी पुनरावृत्ति है जबकि सुझाये मिसरे में…"
5 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
6 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
15 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
15 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service