For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अश्कों का मैं गरीब के सागर समेट लूँ (तरही ग़ज़ल 'राज ')

२२१  २१२१  १२२१   २१२

बलवाइयों के होंसले जाकर समेट लूँ

मासूम गर्दनों पे हैं  खंजर समेट लूँ

 

आये न बददुआ कभी मेरी जुबान  पे

गलती से आ गई तो भी अन्दर समेट लूँ

 

उम्मीद से बनाया हैं बच्चे ने रेत का   

लहरों वहीँ रुको मैं जरा घर समेट लूँ

 

परवाज आज भर रहा पाखी नई नई 

आँखों की चिलमनों में ये मंजर समेट लूँ

 

जिन्दा रहे यकीन मुहब्बत के नाम पर  

फेंके हैं दोस्तों ने जो पत्थर समेट लूँ

 

  ए तितलियों सँभाल के रक्खा उन्हें कहाँ 

 यादें वो बचपने की मैं आकर समेट लूँ

 

जद्दो जहद में जीस्त की हासिल हुए मुझे

उस पर हुजूर चाहते मैं पर समेट लूँ 

मुझको मेरे खुदा तू जरा बख्श दे वजूद

अश्कों का मैं गरीब के सागर समेट लूँ 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 868

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 28, 2015 at 8:55pm

मिथिलेश भैया ,आपकी इस विस्तृत समीक्षा से अभिभूत हुई ,मेरा उत्साह कई गुना बढ़ गया मेरी मेहनत सफल हुई तहे दिल से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 28, 2015 at 8:53pm

आ०  डॉ ०  गोपाल भाई जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई आपकी प्रतिक्रिया से बहुत प्रसन्न हूँ मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभार आपका सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 28, 2015 at 1:45pm

आदरणीया राजेश दीदी बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई है जब इसे गुनगुनाया तो दिल खुश हो गया. तकनिकी समस्या के चलते टीप विलम्ब से कर रहा हूँ. ग़ज़ल के सभी अशआर एक से बढकर एक हुए है. इस शानदार ग़ज़ल पर शेर दर शेर दाद हाज़िर है- 

बलवाइयों के होंसले जाकर समेट लूँ

मासूम गर्दनों पे हैं  खंजर समेट लूँ............... बेहतरीन मतला 

 

आये न बददुआ कभी मेरी जुबान  पे

गलती से आ गई तो भी अन्दर समेट लूँ....................... वाह वाह वाह कमाल का शेर हुआ है ...बिलकुल नया अंदाज़ 

 

उम्मीद से बनाया हैं बच्चे ने रेत का   

लहरों वहीँ रुको मैं जरा घर समेट लूँ......................... वाह वाह दीदी क्या खूब चित्र खींचा है.

 

परवाज आज भर रहा पाखी नई नई 

आँखों की चिलमनों में ये मंजर समेट लूँ................ वाह वाह बहुत खूब 

 

जिन्दा रहे यकीन मुहब्बत के नाम पर  

फेंके हैं दोस्तों ने जो पत्थर समेट लूँ......................... कमाल कमाल ............ बहुत बढ़िया 

 

  ए तितलियों सँभाल के रक्खा उन्हें कहाँ 

 यादें वो बचपने की मैं आकर समेट लूँ..................  वाह वाह बहुत सुन्दर 

 

जद्दो जहद में जीस्त की हासिल हुए मुझे

उस पर हुजूर चाहते मैं पर समेट लूँ ................... वाह वाह दीदी ये भी बहुत बढ़िया शेर हुआ है 

मुझको मेरे खुदा तू जरा बख्श दे वजूद

अश्कों का मैं गरीब के सागर समेट लूँ ..................... हासिल ए ग़ज़ल  लाज़वाब 

दीदी इस ग़ज़ल पर दाद और मुबारकबाद कुबूल फरमाएं ...

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 27, 2015 at 8:28pm

बेहतरीन गजल हुयी है  दीदी श्री  मोती  के दाने की तरह धवल और सांचे में ढले हुए


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 27, 2015 at 8:09pm

मिथिलेश भैया ,आपका दिल से बहुत- बहुत आभार आपकी लम्बी चौड़ी समीक्षा की आदत सी पड़ गई है :-))))))

ग़ज़ल को इन्तजार रहेगा |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 27, 2015 at 8:07pm

आ० गिरिराज जी ,आप जैसे ग़ज़लकार से प्रतिक्रिया में दाद पाना बहुत मायने रखता है आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभार आपका सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 27, 2015 at 8:05pm

आ० कांता जी ,आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन झूम उठा मेरा लिखना सार्थक हो गया इस स्नेहसिक्त प्रतिक्रिया के लिए दिल से बहुत बहुत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 27, 2015 at 10:04am
शानदार ग़ज़ल हुई है दीदी। बधाई। पुनः वापिस आता हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 27, 2015 at 7:11am

आदरणीया राजेश जी , दिल खुश कर दिया आपने । क्या गज़ल कही है , हरेक शेर क़ाबिले दाद है ! पूरी गज़ल के लिये दिल से मुबारक बाद पेश करता हूँ कुबूल कीजिये ॥

Comment by kanta roy on October 26, 2015 at 5:58pm

आये न बददुआ कभी मेरी जुबान पे
गलती से आ गई तो भी अन्दर समेट लूँ----ढेरों आशीशें समेटे हुए लाज़बाब शेर कही है आपने आदरणीया राजेश कुमारी जी।
उम्मीद से बनाया हैं बच्चे ने रेत का
लहरों वहीँ रुको मैं जरा घर समेट लूँ---ममता से ओतप्रोत बहुत ही कोमल भाव है इस पूरी ग़ज़ल में। बधाई आपको इस सुन्दरतम रचना के लिए।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
14 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
14 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service