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शह और मात दोनों ही दे दी, कब तक ताऊ जी अपना मुंह छिपाये रहेंगे? जीवन की चालों को नाकमयाब करती हुई आँखें खुली रहने का सन्देश देती इस रचना हेतु कृपया हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय पंकज जोशी जी सर|
आदरणीय पंकज जी विषय अनुरूप सजग रहने का सन्देश देती बढ़िया लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. लघुकथा पर पुनः आता हूँ. सादर
आदरणीय पंकज जी, आपने प्रदत्त विषय के अनुरूप बहुत बढ़िया कथानक बुना है. उसे शाब्दिक करने के क्रम में जिस चातुर्य से आप चरम बिंदु तक ले गए है वह प्रशंसनीय है. लघुकथा की पंचलाइन में जो कहा गया है उससे भी बहुत ज्यादा अनकहा छोड़ा गया है जो इस लघुकथा को विशिष्ट बनाता है. आपको इस शानदार प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई
वाह ,बधाई आदरणीय पंकज जी . जिन्दगी को शतरंज बनाने वाले अक्सर मात खाते हैं .बढ़िया .
आदरणीय पंकज जोशी जी आप को लघुकथा पढ़ते वक्त लगा था कि आप सीधीसादी बात कहने जा रहे है. मगर जैसेजैसे लघुकथा पढ़ता गया वैसेवैसे दिमाग की धुंध छटने लगी. अंतिम पंक्ति ने कमाल कर दिया. लघुकथा का सार निचौड़ कर रख दिया. इस उम्दा लघुकथा के लिए मेऋ बधाई आप को.
// तू अपना पाप मेरे गले में ना बाँधना चाहे है। //
यहाँ आकर लघुकथा अस्पष्ट हो गई है भाई पंकज जोशी जी. किस पाप की बात की जा रही है यहाँ ?
कथन के अनुमोदन हेतु आभार आदरणीय
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