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कथा पर सकारात्मक टिप्पणी देकर कथा का मान बढ़ने हेतु तहेदिल शुक्रिया आदरणीय शहज़ाद जी।
जिस संकल्प के प्रति दृढ होकर पहचान पायी , वही वक़्त आने पर बेच देने के लिए आतुर हुई। सच्ची दुर्लभ संकल्प और इतने लोगों की कुदृष्टि , आखिर कहाँ बच कर रह पाती है। गांधी बार -बार पैदा नहीं होते है। सादर नमन आपको आदरणीया नीता जी कथा के भाव को समझने के लिए।
एकदम सच कहा है आपने कि "दुष्चक्र आदर्श व व्यवहार साथ दुर नही जा सकते" --शत -शत नमन आपको आदरणीय राजेंद्र जी।
aआदरणीय कांता जी राजनीति अच्छेअच्छो का संकल्प भंग कर देती है. यह चीज ही ऐसी है. इसी को व्यक्त करती लघुकथा को मेरी भावनात्मक बधाई .
एकदम सही कह रहे है आप आदरणीय ओमप्रकाश जी कि राजनीति अच्छे -अच्छो का संकल्प भंग कर देती है. यह चीज ही ऐसी है.वैश्वीकरण के दौर में लालसाओं का बार -बार लपलपाना , मेनका की तरह , ऑंखें आखिर कब तक न झपकेंगी ? संकल्प का टूटना तो अब सहज ही हो चला है। सादर नमन आपको।
सही कह रहे है आप आदरणीय सतविंदर जी कि जय- जयकार भी वही करवा रहा था ,लेकिन हमारे देश की जनता एक बार जिस पर भरोसा कर लेती है यानि फैन- पंखे बन जाती है तो फिर अनवरत ये तमाम उम्र जारी रहता है , चाहे वो कितना भी चारा - पानी गटक जाये। हमारे देश की जनता आँखों देखि मक्खी भी निगलना जानती है। कथा पसंदगी के लिए तहेदिल आभार ।
आपको कथा पसंद आई मेरे लिए ख़ुशी की बात हुई है ये आदरणीया सखी । आभार आपको हृदयतल से।
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