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मैं इस बार भी हर बार की तरह बहुत डरी हुई थी. लेकिन बाल -बाल बच गयी हूँ इबकी , हा हा हा हा आभार...... ज्योत्सना ढेर सारा। :)))
आदरणीय सुनील जी , लघुकथा वैसे भी सरसरी नज़र में पढ़ने की चीज तो बिलकुल भी नहीं होती है। इतने कम शब्दों में कसी हुई पंक्तियों में, भावों की गहनता को समाये हुए होती है कि इसे ठहर -ठहर कर ,शब्द -शब्द पढ़ने से ही इसका रस समझ में आता है। आपको रचना अच्छी लगी ये मेरे लिए आज गर्व का विषय रहा है क्यूंकि आप स्वयं भी एक अच्छे लघुकथाकार है तो मेरा भी खुश होना बनता तो है। हा हा हा हा.... आभार।
बेहद सुन्दर और अर्थगर्भित लघुकथा से इस आयोजन का शुभारम्भ किया है आ० कांता रॉय जी I लघुकथा प्रदत्त विषय को भी पूरी तरह परिभाषित करने में सफल रही है I संकल्प के सफ़र की यह यात्रा सत्ता की चकाचौंध से समाप्त हुई, समाप्ति से पहले के पड़ावों को बहुत सुगठित ढंग से प्रस्तुत किया गया है, जिसने इस रचना तो बहुत ही प्रभावोत्पादक बना दिया है, इस सफल लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है I
चाँद में दाग:
//यात्री उसके पैरों के छालों में से रिसता हुआ मवाद के मानिंद//
//यात्री उसके पैरों के छालों में से रिसते हुए मवाद की मानिंद//
//एक नजर उसने अपने पैरों की तरफ देख , उसके तरफ आँखें तरेर ,//
//एक नजर उसने अपने पैरों की तरफ देख , उसकी तरफ आँखें तरेर ,//
//पीछे जय जयकार अभी भी जारी था//
//पीछे जय जयकार अभी भी जारी थी/
//एक स्मित मुस्कान होंठों पर कायम हुई।//
//एक स्मित मुस्कान होंठों पर फ़ैल गई ।//
मैं सच कहती हूँ सर जी , कसम से , इस बार मैंने जरा भी जल्दबाज़ी नहीं की थी। एक महीने पहले ही कथा को लिख ली थी , फिर पलट -पलट कर प्रतिदिन ,दिन में कई -कई बार परेखा करती थी इसको ।
बड़े ही जतन से एक -एक पंक्ति को , व्याकरण के किताब लेकर, बैठ कर , पोथी पढ़ -पढ़ कर , समस्त लिंग -भेद सहित त्रुटियों को दूर करने की पर्याप्त कोशिश भी की थी , लेकिन इस बार लिंग में गलती नहीं, कहीं और ही गलती हो गयी। बहुत चौकन्ना रहने की जरुरत है यहां तो।
ये गलती तो मुआ मेरी जान के साथ ही जाएगी लगता है। क्षमा सहित
अगली बार इस दाग को भी रिन टिकिया से धोकर लाऊंगी। भला उसकी साडी मेरी साडी से सफ़ेद कैसे !!!
शत -शत नमन ! __/\__/\__/\__
सराहनीय लघुकथा.... राजनीति की चकाचौध ने आखि़र डिगा ही दिया.... अच्छी प्रतीकात्मकता.... वाह !!!
कथा पसंदगी के लिए आभार आपको आदरणीय अजीत जी। __/\__/\__/\__
हाँ , संकल्प पर डिगे रहने के लिए अदम्य साहस और दृढ़ता की जरुरत होती है . आपको कथा पसंद आना मेरे लिए हर्ष का विषय रहा है। आभार आपको तहेदिल आदरणीया राहिला जी।
जिनके संस्कार अटल हो वो कभी नही बदलते---यह बहुत बड़ी बात कही है आपने आदरणीया बबिता जी ,
जी , बिलकुल सही कहा है आपने , संस्कार की जड़े मजबूत हो तो हौसला विपरीत परिस्थितियों में भी पूर्ववत कायम रहती है , वो अडिग रहती है। कमजोर पलों में मन की दृढ़ता की परीक्षाएँ चलती ही रहती है। संस्कार यहीं पर काम आया करते है हमेशा। आभार आपको ।
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