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आदरणीय सुधीर द्विवेदी जी आप को लघुकथाएँ वास्तव में अपना मुकाम हासिल कर रही है. आप ने कुतर-कुतर के द्वारा मन के दर्द को जिस सिद्दत से उकेरा है वह काबिलेतारीफ हैं . बधाई इस उम्दा लघुकथा के लिए.
बहुत-बहुत धन्यवाद रचना को समय देने के लिए आ. ओमप्रकाश जी ! सादर
वाह वाह... क्या बात है सुधीर भाई, बहुत ही शानदार लघुकथा कही है, मन प्रसन्न हो गया पढ़ कर| शुरू से आखिर तक बांधे रखने में सक्षम है आपकी यह रचना| सादर बधाई स्वीकार करें|
हार्दिक आभार आ. चन्द्रेश भाई जी !
बहुत-बहुत धन्यवाद आ. ज्योत्स्ना कपिल जी !
गलत करने की कोशिश एक सच्चे इंसान को अंदर तक हिला कर रख देती है, पर आखिरकार अंतरात्मा उसे संबल दे ही देती है, सत्य व ईमानदारी की कठिन राह पर चलने का। प्रतीकों के माध्यम से प्रस्तुत सुन्दर लघुकथा आ. सुधीर जी।
हार्दिक आभार आ. नीरज जी !
यूं ही हम अनुज सुधीर की लेखनी के दीवाने नहीं है। सादर शुभकामनाएं ।
आपका सम्बोधन पढ़ मन भीग गया आ. रवि सर जी | हार्दिक आभार !! सादर
चूहों को प्रतीक बनाकर एक बेहतरीन रचना लिखी है आपने प्रदत्त विषय पर , कभी न कभी ग्लानि होती ही है अपने कर्मों पर और अगर उस समय सही दिशा में सोच लिया जाए तो इन चूहों की आवाज़ कभी नहीं सुनाई देगी । बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिए
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