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प्रिय सुनील भाई , धन्यवाद कि आपने मुझे यहाँ पहचान लिया। निवेदन यह कि ग़ज़ल को छोड़ कर आप जिस भी विधा में जाएंगे, अपने इस मित्र को वहीँ पाएंगे । आपने मेरी रचना के लिए और उस पर टिप्पणी के लिए समय निकाला , आभारी हूँ
हार्दिक बधाई आदरणीय प्रदीप नील जी!बहुत सशक्त लघुकथा!मीडिया की मानसिकता पर गहरी चोट!
बहुत बहुत शुक्रिया तेज वीर जी। आपाधापी भरे इस युग में पोस्ट को पढ़ कर ईमानदार टिप्पणी देने में जो समय लगता है , उसका मूल्य नहीं चुकाया जा सकता। कृपया धन्यवाद स्वीकारें
वाह.. बधाई प्रदीप जी बढ़िया कथानक को बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत किया है आपने..
धन्यवाद सीमा जी। आपको कथ्य और प्रस्तुति दोनों ही पसंद आए, सुन कर बहुत भला लग रहा है और आश्वस्त भी हुआ हूँ।
समय निकाल कर इधर आने का शुक्रिया
आदरणीया रचना जी , समय निकाल कर टिप्पणी देने के लिए आभारी हूँ।
आपने जो संशय प्रकट किया है उसे live chat के मेन रूम में प्रभाकर जी के लिए प्रेषित कर रहा हूँ ताकि बाकी सदस्य भी इस वार्ता का लाभ उठा सकें।
वैसे प्रभाकर जी की टिप्पणी मेरी इस रचना पर पहले ही आ चुकी मगर उन्होंने ऐसा कुछ इंगित नहीं किया। फिर भी एक सार्थक वार्ता से हम सब का भला होगा , ऐसी मेरी इच्छा है
धन्यवाद सहित,
इसी बीच प्रभाकर जी का जवाब मेन रूम में आ चुका।
कॉपी करके यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ
जी नहीं
कालखंड दोष हरगिज़ नहीं है
आदरणीय प्रदीप नील जी आप ने बहुत ही उम्दा विचार प्रस्तुत किया है. बधाई इस लघुकथा के लिए.
जी बहुत शुक्रिया क्षत्रिय जी ,इधर आने और टिप्पणी दे कर मान बढ़ाने के लिए।
आपको विचार उम्दा लगा , यह सुन कर मुझे अच्छा लगा
सादर
आपकी इस रचना से स्वयं को जोड़ पाया हूँ भाई प्रदीप नील जी, जो सन्देश आपने इस रचना में कहा है, कई बार कई स्थानों पर मैं भी कहता आया हूँ| मेरी तरफ से इस लघुकथा के सृजन हेतु विशेष बधाई स्वीकार करें|
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