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आदरणीय सतविंदर कुमार जी आप को मेरी लघुकथा अच्छी लगी . आभार आप का .
आदरणीय वीरेंदर वीर मेहता जी आप को मेरी लघुकथा उम्दा लगी, यह मेरी लघुकथा की सफलता के लिए एक शुभ सन्देश है. आभार आप का .
अघोषित संकल्प (संकल्प विषयाधारित )
ओफ..! कितनें चूहे दिख रहें हैं उसके इर्द-गिर्द ? कोई इधर कुछ कुतर रहा है तो कोई नीचे से भागता हुआ अलमारी के ऊपर जा चढ़ा है | अपनें नुकीले दांतों से एक चूहा उसकी बचपन की फोटो को ही कुतरनें लगा है|
"हश..हश..!!" की आवाज़ करते हुए उसने चूहे को भगानें के लिए ढेरों जतन किये पर सब बेकार | तब-तक एक अन्य चूहे ने उसके घर की दीवार में एक बड़ा सुराख कर दिया है| चारों ओर से कुतर-कुतर की आवाजें आ रहीं हैं| परेशान होकर वह सुस्ताने के लिए आरामकुर्सी पर बैठ गया, तभी एक मरियल सा चूहा उसके हाथ को स्पर्श करता हुआ भाग गया|
लिजलिजे स्पर्श से वह घृणा से भर कर हाथ झटकते हुए वह झुँझला उठा | चारों ओर से उसे कुतर-कुतर की आवाजें सुनाई दे रही हैं | वह ज़ोर से चिल्ला पड़ा | "सब बर्बाद कर देंगे ये...सब कुछ ..!" तभी सहकर्मी के झिंझोड़ देने से वह जाग गया |
"क्या हुआ..?” सहकर्मी आश्चर्य से उसकी ओर देखते हुए पूछा |
"कुछ नही... बुरा सपना था | " पसीने से लथ-पथ उसने ,झेंपते हुए उत्तर दिया |
थोड़ी देर वह कुर्सी पर ही बैठा रहा | कुतर-कुतर की मद्धिम ध्वनि उसे अब भी सुनाई दे रही थी | ऊब कर वह वाश-रूम में घुस गया | चेहरे पर पानीं के छींटे मार कर चेहरा पोछते हुए उसनें शीशे में जब अपना चेहरा देखा तो उसे लगा उसकी ठुड्डी सिकुड़ रही है ,और उसके क्लीन-शेव चेहरे पर लम्बी-लम्बी नुकीली मूंछे उग आई है | उसकी घबराहट और बढ़ गयी | जल्दी-जल्दी वापस वह अपनीं कुर्सी पर आ बैठा |
कुतर-कुतर की ध्वनि अब भी मद्धिम-मद्धिम,उसके कानों में गूंज रही है |
हालाँकि अपने उन परिचित ठेकेदारों के टेण्डर की फाइलों को स्वीकृत करनें की सुविधा-राशि उसे मिल चुकी है ,पर अपना ध्यान बंटाने के लिए वह फिर ,दोबारा उन्हें उलटने- पलटनें लगा |
धीरे-धीरे फाइलों के कई पन्नों में उसके कलम की लाल स्याही ने अपनें निशान छोड़ दिए | टेण्डर, अब अस्वीकृत हो गया है |
उसके माथे की टेढ़ी-मेढ़ी लकीरों ने अपने पैर फैला कर सीधे कर लिए | उसने शांत-भाव से अब दूसरे टेंडर की फ़ाइल खोल ली |
काम में मशगूल होकर उसे अब कुतर-कुतर की ध्वनि बिलकुल भी नहीं सुनाई दे रही है..|
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बेहतरीन प्रस्तुति के साथ एक मनोविज्ञान रोपित हुआ है आपकी इस कथा में बहुत ही जो सराहनीय है। उसके मन का अपराधबोध रूपी चूहा तो उसके मन में ही बैठकर कुतरन में लगा हुआ है। ढेरों बधाईयाँ स्वीकार करे अपनी इस सफलतम लघुकथा के लिए आदरणीय सुधीर जी।
आभार !! आ. कान्ता जी
आभार आ. बबिता जी !
कथा पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया देने के लिए हार्दिक धन्यवाद आ. शेख शाहजाद उस्मानी जी |
प्रदत्त विषय संकल्प को एक बेहतरीन लघुकथा से परिभाषित किया है भाई सुधीर द्विवेदी जी I बहुत ही परिपक्व शैली में रची इस लघुकथा की जितनी प्रशंसा की जाये, कम है I बहुत कम ऐसी रचनाएँ होती हैं जो पढने वाले को मंत्रमुग्ध करने में सक्षम होती है, इस अप्रतिम और अद्वितीय लघुकथा के लिए मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें I
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