For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वे दिन भी भले थे...

फूल से दिन खिले थे
साँझ गुलशन सी रही
खुशियों का चलन था
अब विरानी भली

वे दिन भी भले थे
ये साँझ भी है भली

  .......
छूटना था छूट गये
रंग कच्चे प्रेम के
चाशनी ना थी घनी
हम तो पगे , तुम ना पगे

वे दिन भी भले थे
ये साँझ भी है भली

 ......
हिल रहे थे मिल रहे थे 

सुख सपने सब खिल रहे थे

दुध जल से मिल रहे थे
घुलकर एक ही बने

वे दिन भी भले थे
ये साँझ भी है भली

.....
जुग जैसे दिन अब बीते
पाते खोते मन भी रीते
सगों ने किया  किनारा
अलग बहे नदी जल धारा

वे दिन भी भले थे
ये साँझ भी है भली

 .......
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:33pm

आभार आपका  आदरणीय शहज़ाद जी      

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:33pm

सार्थक मार्गदर्शन युक्त प्रतिक्रिया देने हेतु आभार आपका  आदरणीया  राजेश कुमारी जी      जी। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:32pm

आभार आपका  आदरणीय श्याम नारायण     जी।

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:31pm

आभार आपका  आदरणीयमिथिलेश    जी। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:30pm

 सार्थक मार्गदर्शन युक्त प्रतिक्रिया देने हेतु आभार आपका  आदरणीय सुशील सरना   जी। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:29pm

 आभार आपका  आदरणीय दिग्विजय  जी। 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2015 at 8:00pm
सम्मान्य वरिष्ठजन की टिप्पणियों से मुझे भी बहुत कुछ सीखने को मिला। आदरणीया Kanta Roy जी , 'सांझ' को बहुत बढ़िया तरीके से परिभाषित करती बेहतरीन भाव पूर्ण रचना बन पड़ी है। बहुत बहुत बधाई आपको।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 26, 2015 at 10:16am

रचना बहुत  खूबसूरत हो जायेगी सुझावों  को अमल में लाने के बाद आ० कांता जी अभी दिल से बहुत- बहुत बधाई लीजिये 

Comment by Shyam Narain Verma on October 24, 2015 at 10:07am

बहुत  सुंदर और भावपूर्ण रचना  हुई है | हार्दिक  बधाई 

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 22, 2015 at 11:46pm

ये प्रस्तुति और समय चाहती है, यथोचित संशोधन पश्चात् पुनः उपस्थित होता हूँ सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

pratibha pande replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"सफल आयोजन की हार्दिक बधाई ओबीओ भोपाल की टीम को। "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
11 hours ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
16 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ओबीओ द्वारा इस सफल आयोजन की हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
Tuesday
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service