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बढिया ! सटीक व्यंग्य से बिलकुल निशाने पर चोट कर गई | बधाई आदरणीय
नीम सी कड़वी हकीकत का रोपण इस कथा में बखूबी हुआ है। सच कहे तो लेखन स्वार्थ रहित , निर्मल जल के सामान निर्बाध गति से स्वयं के भावनाओं को लिपिबद्ध करने के लिए होना चाहये न की व्यावसायिकता के लिए।
लेखक के मन के भावों की व्यवसायीकरण ने स्वच्छ लेखकीय कर्म को दूषित भी किया है।
हमने जो लिखे है वो हमारे जज्बात थे , अब मेरी अभिव्यक्ति किसी को अपनी लगे , किसी के दिल तक पहुंचे , तो रचना स्वतः ही जीवित हो उठती है।
बहुत ही सार्थक कथानक पर आपने कलम चलाई है आदरणीय सतविंदर जी ,बधाई स्वीकार करें।
आ० सतविंदर जी -----आपने यथार्थवादी सुन्दर रचना प्रस्तुत की . सार्थक कथा . सादर.
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