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वाह राजनीती का रंग !!! एसा रंग जो वक़्त के अनुसार बदलता भी रहता है बधाई आपको आ० कांता जी
कथा पर आपसे सराहना पाकर मैं अभिभूत हुई हूँ। आभार आपको आदरणीया राजेश जी।
युगों युगों की अलग अलग सोच अलग परिभाषाएं अलग रंग के महत्त्व |अच्छी लघु कथा आदरणीय बधाई आपको
"मासुमियत का रंग"
प्रकृति अपनी आभा चारों ओर बिखेर रही थी. पेड़ो से छन-छन कर आती सुनहरी सुर्यकिरणों ने धरती माँ को अपने रंग मे रंग लिया था.ठंड का सुरुर अभी भी जारी था.स्नेहा चाय का कप थामे बरामदे आ खड़ी हुई.संजीव अपने काम के सिलसिले मे दौरे पर थे तो कोई जल्दी नहीं थी.बच्चे भी अपने कमरे मे सो रहे...
अरे! ये क्या शिना और शानू ,ये कब उठ आये.ये क्या कर रहे है.
"अरे शानू! ,शीना! इतनी ठंड में क्या कर रहे हो तुम लोग और ये पानी का मग...?"
"माँ! माँ देखो नानू उग आये है."
"नानू! उग आए क्या मतलब..."
माँ! आप कहती हो ना कि नानू की जान तो जंगलों मे बसती हैं और आपकी जान नानू के दिल में."
"तो..."
हमने नानू के नाम से बहुत सारे बीज यहाँ बो दिये है उन्हें पानी डाल रहे है.वो धीरे-धीरे उग कर बडे हो जायेंगे तो यहाँ जंगल बन जाएगा. तब नानू हमेशा हमारे पास हो जाएंगे. तब आप नानू के दिल में और हम आपके पास आपके दिल मे... हे ना! कितनी मजे की बात.
सच बच्चे कितने मासूम होते है.इन्हें चाहे जिस भी रंग मे रंग दो."
मौलिक एंव अप्रकाशित
आदरणीया नयना जी, आपकी लघुकथा एक अलग रंग में सराबोर लगी, अच्छी कहानी प्रस्तुत हुई है, बधाई आपको. अंतिम वाक्य का उद्देश्य मुझे केवल "रंग" प्रविष्टि हेतु लगा.
सही कह रहे है बहुत कोशिश की इसे बदलने की पर रंग ना ला पाई
आदरणीया नयना जी, आपने शीर्षक को सार्थक करती बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
आभार मिथिलेश जी .आपकी समिक्षात्मक टिप्पणी का इंतजार रहता है.
आदरणीया नयना जी, मेरे कहे को मान देने के लिए आभार. तनिक व्यस्तता के चलते कुछ दिन संक्षिप्त टिप्पणियाँ ही जारी रहेंगी. दायित्व से मुक्त होकर पुनः मंच को अधिक समय दूंगा. सादर
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