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औरत .

सिर्फ एक

माँ, पत्नी, प्रेमिका

बेटी, बहू, सास,

दादी, नानी

ही नहीं.....

एक जीता जागता उदाहरण भी है

त्याग, ममता, बत्सलता

और संघर्ष का भी...........

एक निर्मात्री भी

मूल्यों , संस्कारों, परम्पराओं

और इतिहास की...............

एक इज्जत भी 

घर कुटुंब, गाँव 

और देश की.....

पर शायद अर्थहीन हो गया है 

उसका सब कुछ होना भी

सिमट गया है 

उसका बिरात स्वरुप 

सिर्फ ,

एक मनोरंजन,

एक खिलौना,

एक तमाशा

एक प्रदर्शन की बस्तु

और बासना की तृप्ति तक 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 422

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Comment by narendrasinh chauhan on March 14, 2016 at 10:06am

खूब सुन्दर रचना

Comment by रामबली गुप्ता on March 14, 2016 at 6:23am
बहुत सुंदर रचना
हार्दिक बधाई। सादर
Comment by Samar kabeer on March 13, 2016 at 2:54pm
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,औरत की बुलन्दी को दर्शाती बहुत अच्छी कविता लिखी आपने,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

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