For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आप पहले झोपडी तो इक बनाकर देखिये

२१२२/२१२२/२१२२/२१२

आप पहले झोपडी तो इक बनाकर देखिये

ख्वाब फिर महलों के भी दिल में सजा कर देखिये

मैं नहीं हूँ तो हुआ क्या ये ग़ज़ल मेरी तो है

मेरी गजलें  भी कभी तो गुनगुना कर  देखिये

जिस तरफ देखोगे, तुमको बस नजर आयेंगे हम

है मगर बस शर्त इतनी मुस्कुराकर देखिये

है विरह के बाद में ही यार मिलने का मज़ा

आग पहले ये विरह की खुद लगा कर देखिये

चीज़ मय अच्छी बुरी है आप मत बोले अभी

जाम पहले ओंठो से अपने लगाकर देखिये 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 712

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on April 28, 2016 at 12:46pm

आदरणीय आशुतोष जी बढिया गजल कही है आपने दिली बधाई स्‍वीकार करें  यदि गजलों  शब्‍द टंकण त्रुटि नहीं है तो हम भी आदरणीय गिरिराज जी की बात से सहमत है । सादर । 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 28, 2016 at 12:09pm

आदरणीय भाई धर्मेन्द्र जी ..रचना को आपका स्नेह मिला और मुझे इससे नयी उर्जा मिली ..सादर धन्यवाद के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 28, 2016 at 12:08pm

आदरणीया राज जी ..आपने जो संसोधन किया है उससे शेर अच्छा लग रहा है मैं संसोधन कर लूँगा ..आपके मार्गदर्शन और रचना पर उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ ..सादर प्रणाम के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 28, 2016 at 12:06pm

आदरणीय मिथिलेश जी ...आपकी रचनाओं को पढ़कर और अपने रचना पर आपके स्नेहिल मार्गदर्शन से हौसला बना रहता है .आपके मशविरे के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 28, 2016 at 12:01pm

आदरणीय भाई साब ..काफी लम्बे अरसे के बाद मंच से जुड़ पाया ..मेरी रचना धर्मिता की इस यात्रा पर आपके साथ चलते हुए मैंने सतत सीखा ..आपके मशविरे पर अमल करूंगा और रचना संसोधित कर लूँगा ..आपके ऐसे स्नेह और आशीरवाद की कामना के साथ ..सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 28, 2016 at 11:55am

आदरणीय सुशील जी ..आप सब के स्नेह और मार्गदर्शन से सीखने का यह सिलसिला बदस्तूर जारी है 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 28, 2016 at 11:54am

आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी..रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ सादर 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 27, 2016 at 10:33pm

अच्छा प्रयास है आदरणीय आशुतोष जी, दाद कुबूल करें।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 26, 2016 at 10:49pm

आदरणीय आशुतोष जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई. यह भी अवश्य है कि मिसरों के विन्यास को बदलकर ग़ज़ल में निखार लाया जा सकता है. गुणीजनों ने भी इस तरफ इशारा किया है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 26, 2016 at 3:10pm

वाह वाह दिलकश ग़ज़ल कही है |  एक मिसरे को इस तरह कहना चाहूँगी  शायद आपको भी मंजूर होगा ....

जाम पहले ओंठो से अपने लगाकर देखिये----जाम होठों से  जरा पहले  लगाकर देखिये

बहुत बहुत बधाई आ० आशुतोष जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय नीलेश भाई जी सादर नमस्कार जी। अहा! क्या कहने भाई जी बेहद शानदार और जानदार ग़ज़ल हुई है। अभी…"
1 hour ago
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो"
6 hours ago
Aazi Tamaam commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"अच्छी रचना हुई आदरणीय बधाई हो"
6 hours ago
Aazi Tamaam commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो 3 बोझ भारी तले को सुधार की आवश्यकता है"
6 hours ago
Aazi Tamaam commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय इस बह्र पर हार्दिक बधाई"
6 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
6 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत शुक्रिया आदरणीय भंडारी जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
6 hours ago
surender insan commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई जी  छन्न पकैया (सारछंद) में आपने शानदार और सार्थक रचना की है। बहुत बहुत बधाई…"
7 hours ago
surender insan commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब। बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करे जी।"
8 hours ago
surender insan commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सौरभ जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और अपना कीमती वक़्त देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service