आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आदरणीय पंकज जी , लघुकथा वाकई बहुत खुबसूरत तरीके से कही गयी है ,सम्प्रेषनियता यहाँ देखते ही बनती है . क्षण-विशेष की इस प्रस्तुति ने पाठक को अंत तक बांधे रखा है .लघुकथा का उद्देश्य और कथ्य भी खूब उभर कर आया है कि गलत काम का अंजाम देर से ही सही , होता गलत ही है . नैतिक -पतंनोमुखी अधोगति को प्राप्त होता है खूब संदर्भित हुआ है . बाकी अगर विषय सन्दर्भ में हम देखे तो पाते है कि पात्र को उसकी कारगुजारियों के साथ मीटिंग के नाम पर "एम डी साहब" एक तमाशा ही प्रायोजित करते है और बाकी उपस्थितजन उस तामाशे का अनकहे में ही तमाशबीन के रूप में प्रस्तुत होते है . जब भी कोई विसंगति समाज के सामने तमाशा बन कर सामने आएगी तो उस वक्त वहाँ उपस्थित समाज तमाशबीन संदर्भित होगी ही क्योंकि तमाशे का प्रयोजन ही तमाशबीन हुआ करते है . ह्रदय से बधाई प्रेषित है आपको . सादर .
आदरणीया कान्ताजी, आपकी उपर्युक्त टिप्पणी सदस्य-रचनाकार को कैसी सीख दे रही है ?
आप किस हिसाब से ’संप्रेषणीयता यहाँ देखते ही बनती है’ जैसा वाक्य कह पा रही हैं, आदरणीया ? अव्वल, ’संप्रेषणीयता’ का क्या अर्थ समझा है आपने ?
कोई प्रस्तुति हम अपनी निगाहों से तबतक न ’देखें’, जबतक रचनाकार ’दिखाने’ पर न आ जाय. प्रस्तुत कथा का संदर्भ और तथ्य चाहे जितना प्रभावी हो, इसके प्रस्तुतीकरण को अभी बहुत सधना है. हम इस हेतु रचनाकारों को प्रोत्साहित करें न ? या, अपना हेतु इसके अलावा भी होना चाहिए ? फिर लाभ किसे होगा ?
अलबत्ता, इस कथा द्वारा प्रदत्त शीर्षक को संतुष्ट करना पूरी तरह प्रभावी नहीं हुआ है. ऐसा मुझे लग रहा है.
सादर
आदरणीय सौरभ जी , जिस वाक्य विन्यास को आप चिन्हित किये है वो मुझे भी पढ़ते हुए चावल में कंकर के सामान आभाषित हुआ था लेकिन आदरणीय पंकज जी नव-अभ्यासी है और पिछले बार की अपेक्षा उनकी ये कथा इस बार प्रभावी तरीके से पेश हुई है ,इस वजह से लेखन में उनकी प्रस्तुति के विकास को देखकर ही संतुष्ट हुई हूँ .
’संप्रेषणीयता यहाँ देखते ही बनती है’ जैसा वाक्य मैंने कथ्य को बांधने के लिए कल्पनाशीलता का प्रयोग से जिस प्रकार क्षण-विशेष को प्रस्तुत किया है उस सन्दर्भ में ही कहा था . दरअसल हम अपने अनुजों को उनके सार्थक रूप से किये गए प्रयासों के तहत भी प्रोत्साहित करते है .इस निरंतर प्रयास से आदरणीय पंकज जी भविष्य में एक अच्छे लघुकथाकार होंगे ये आशा है मुझे . सादर .
आदरणीया कान्ताजी, साग्रह निवेदन है कि आप हर बात को अन्यथा मोड़ न दिया करें. आपकी बातों और उसके मर्म को मैंने गहराई से समझा है, तभी आपसे मैं टिप्पणी के माध्यम से संवाद बना गया. मंच की परिपाटी के अनुरूप हम सतत बने रहें वह अधिक समीचीन होगा. एक मंच के तौर पर हम भी किसी सदस्य-रचनाकार के हितैषी हैं. उत्साहवर्द्धन के क्रम में हम किसी सीमा के पार जाने में विश्वास करते हैं. लेकिन ऐसी कोई गति अनुर्वर तो नहीं दिखनी चाहिए न ?
आदरणीया, सत्य यही है कि पिछले छः वर्षों से अपनी तमाम सीमाओं के बावज़ूद यह मंच रचनाकरों की रचनात्मकता पर गहन काम कर रहा है. यही इस मंच का उद्येश्य है. इसके प्रतिफल अब दिखने भी लगे हैं, इसी कारण हमारी आश्वस्ति और भी गहन हुई है.
यह अवश्य है कि हर सदस्य के कहे और उसकी समझ की आवश्यकता हुआ करती है, लेकिन उस कहे या समझ में उदार दिशा-निर्देशन आवश्यक होना चाहिए. इसके प्रति हम जितना संवेदनशील होंगे, यह मंच रचनाकारों के साथ उतना ही न्याय करता हुआ दिखेगा.
सादर
आदरणीय सौरभ जी , आपकी टिपण्णी और मार्गदर्शन के लिए आपका बहुत-बहुत आभार| आपके और मंच की अपेक्षा के अनुसार मैं और गंभीर होने का पूरा प्रयास करूंगी और आशाओं पर खरी उतरने की पूरी कोशिश करुँगी|सादर !
टिपण्णी = टिप्पणी
खरी उतरना = खरा उतरना
खरी-खरी = साफ-साफ
सादर आभार आदरणीया कान्ताजी. हम छोटे-छोटे लोग आपसी सहयोग और सान्निध्य में धीरे-धीरे लगातार बड़े काम करते दिखेंगे.
सादर
जय ओबीओ ...
आदरणीय पंकज जोशी जी,
सबसे पहले आपकी प्रस्तुति से वाक्य-समूह -
होटल के कमरे में विभोर ने एक लिफाफा अपनी जेब से निकाला लड़की ने देखा उसकी फोटो खींची और पर्स से एक रूपये की गड्डी लिफ़ाफ़े के साथ उसके हाथ में रख दी । जैसे ही लड़की मोबाइल अपने पर्स में रखने वाली थी तभी उसने लड़की जैकेट की चेन की ओर हाथ बढ़ाया जिसे लड़की ने बीच में ही रोक दिया टेंडर की कॉपी के लिए पैसे आपको दे दिये गये है ।
अब इस वाक्य-समूह को संशोधन के बाद देखें -
होटल के कमरे में विभोर ने एक लिफाफा अपनी जेब से निकाला । लड़की ने देखा, उसकी फोटो खींची और और उसने पर्स से रुपओं की एक गड्डी के लिफ़ाफ़े को उसके हाथों में रख दिया । जैसे ही वो अपनी मोबाइल को अपने पर्स में रखने वाली थी, तभी उस आदमी ने लड़की के जैकेट की चेन की ओर हाथ बढ़ाया, जिसे लड़की ने बीच में ही रोक दिया - ’टेंडर की कॉपी के लिए पैसे आपको दे दिये गये है ।’
क्या उद्धरण की संप्रेषणीयता में कोई परिवर्तन महसूस हो रहा है, आदरणीय ?
इसी तरह अन्य पंक्तियों में भी ग़ुंजाइश प्रतीत हो रही है. कृपया देख लीजियेगा.
हम रचनाओं के प्रस्तुतीकरण पर भी सम्यक ध्यान दें और तदनुरूप अभ्यास करें. महज़ अपनी प्रस्तुतियाँ पोस्ट करना कैसे सार्थक हेतु हो सकता है ?
विश्वास है, मेरे कहे का इंगित आप तक अवश्य पहुँचा होगा. साग्रह निवेदन है आदरणीय, कि ओबीओ के मंच का समीचीन उपयोग करें.
शुभेच्छाएँ
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