आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आपकी रचना के शब्द जैसे चित्र खींच रहे हैं आखों के आगे| इस बढ़िया रचना में गुरुजनों और सुधीजनों की सलाह के अनुसार बदलाव करने से रचना बेहतर हो जायेगी| इस लघुकथा के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें, आदरणीय मोहन बेगोवाल जी |
बहुत खूब सबसे बड़ा करतब तो हो गया था... इस पंच लाइन के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय कबीर साहब.
janab jan jan ki kutsit manovarti aur tamashe ki pyas ko sahi se chitrit kiya hei is katha me sadar
मोहतरम आली जनाब समर कबीर साहिब, अपनी ही लघुकथा का ये तरमीमशुद: रूप ज़रा मुलाहिज़ा फरमाएँ:
शह्र के तिराहे की बायीं जगह का चयन किया। साईकिल पर लदी मैली कुचैली गठड़ी, पीतल की थाली,चार लंबे बाँस और रस्सी को ज़मीन पर पटका। साईकिल को एक तरफ़ खड़ा किया। बांसों को आमने सामने खड़ा करके गाड़ा और उस पर रस्सी तानी। मैले कपड़े, बाल बिखरे हुए बारह बर्षीय अपनी लड़की को रस्सी पर चढ़ाया और फिर उसके हाथों में रीम थमा दिया। लड़की ने रस्सी पर संतुलन बना लिया था। अब वह रीम को पैरों के पंजों के सहारे रस्सी पर चलने लगी। बाप पीतल की थाली ज़ोर ज़ोर से बजाकर जनता का ध्यान आकर्षित करने लगा। भीड़ धीरे धीरे एकत्रित होने लगी। लड़की रस्सी पर लगातार अपना हुनर दिखा रही थी। बाप ने झोली से कटोरा निकाला और लोगों के आगे करने लगा। लोग उसके कटोरे में रुपये पैसे डाल रहे थे। लेकिन ये क्या अचानक एक पूरी तरह से नग्न पागल नवयौवना, बाल बिखरे हुए बालों को खुजाती हुई और बड़बड़ाती हुई उस तमाशे के पास से गुज़री। फिर क्या था, देखते ही देखते पूरी भीड़ उस पागल नवयौवना के अंगों के नापतोल में व्यस्त हो गई। किसी की जीभ लपलपा रही थी, कोई आँखे फाड़-फाड़ कर देख रहा था तो कोई एक दूसरे को कोहनी मार कर इशारा कर रहा था। लड़की के करतब को कोई नहीं देख रहा था। बाप कटोरा लिये आवाक सा भीड़ को देख रहा था। भीड़ उस लड़की के पीछे चल दी । बाप ने लड़की को रस्सी से नीचे उतार लिया, क्योंकि सबसे बड़ा करतब तो हो गया था।
मोहतरम समर कबीर साहिब, इसके बारे में मेरी प्रतिक्रिया कुछ यूँ है:
१. कोशिश बेहद उम्दा है, जिसके लिए आप बधाई के हक़दार हैं I
२. रचना विषय के साथ भी बखूबी इन्साफ कर रही है I
३. इस रचना में जो भी कहा गया है, वह खुद आपने कहा है I कुछ बातें पात्रों के लिए भी छोड़ी जाएँ I जैसे कि उस नग्न लड़की को देखकर कोई ये कहे कि "छोड़ यार ये तमाशा, असली तमाशा तो वो रहा I"
४. रचना के अंत में पन्च लाइन का होना बहुत ज़रूरी होता है, जो इस लघुकथा से नादारारद है I तो अंत में जब पूरा हुजूम तमाशा छोड़ कर उस उरिआँ जिस्म नवयुवती के पीछे हो लिया, तो उस वक़्त तमाशा करने वाली लड़की भी उसी नग्न युवती को देखने लग जाती है I लेकिन उसका बाप उसकी आँखों पर हाथ रख कर कहे कि:
"बेटी हमे उधर नहीं देखना, क्योंकि हम गरीब ज़रूर हैं मगर तमाशबीन नहीं I"
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