आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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चैम्पियन
दौड़ शुरू ही होने वाली थी ,तभी सरिता की एक सहेली ने आकर पूंछा -
"सरिता क्या तेरे पैर में चोट लगी है?"
"नहीं तो।"
"घुटने के पास दबाते हुए, इधर, इधर देख तुझे दर्द नहीं होता।"
"नहीं तो।"
"जरुर कुछ गड़बड़ है, तुम्हें दर्द भी नहीं हो रहा।"
"नहीं तो।"
"क्या नहीं तो,नहीं तो,लगा रखा है,यह घुटने के नीचे देख नील सा पड़ गया है, पांव चला के देख।"
"ठीक तो है।"
तभी दूसरी सहेली ने पूछा, "क्या हो गया सरिता?"
"कुछ भी तो नहीं।"
"तू ग्राउण्ड पर कुछ लंगड़ा रही थी, मैं तो तुरंत बोलने वाली थी।"
"नहीं मुझे कुछ नहीं हुआ है।"
"अच्छा खड़े होकर देख, थोड़ा वजन डाल इस दाहिने पैर पर।"
"हाँ,कुछ लग तो रहा है।"
"तूं बिल्कुल सीरियस नहीं है,अपने शरीर के प्रति,बस एक ही धुन।"
सब देख-सुन रही तीसरी सहेली भी आ पहुंची "यह क्या भीड़ लगा रखी है ,क्या हुआ हमारी चैम्पियन को।"
"घुटने में कुछ समस्या है, लगता है चिकनाई कम हो गई है।"
"अरे, सरिता, थोड़ा दौड़ के तो बता।"
सरिता उठी - "आह ,कुछ दर्द सा तो हो रहा है।"
प्रतियोगिता प्रारंभ होने की सीटी बजी,
"आह, आउच, मैं नहीं दौड़ पाऊंगी, इस साल भाग नहीं ले पाऊंगी।"
सरिता की तीनो सहेलियों की नजरें एक दूसरे से मिलीं और कुटिल मुस्कान समेंटती खुश हो, जा रही उसे अकेला छोड़ कर।
हड़बड़ा कर चादर फैंक ,उठ बैठी सरिता।
नहीं, मैं कमजोर नहीं हो सकती, मैं ही चैम्पियन हूँ और रहूँगी।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय राहिला जी।
तहेदिल से शुक्रिया जनाब शहजाद जी ।
बढ़ीया प्रयास आदरणीय पवन सर ।
धन्यवाद आदरणीय रवि जी ,आपसे समीक्षा की उम्मीद रहती है ,परंतु असफल ही रहता हूँ ।
खेल में भी षडयंत्र . बहुत खूब. बधाई आप को आदरनीय पवन जैन जी
आभारी हूँ आदरणीय ओमप्रकाश जी ।
बहुत बहुत धन्यवाद सुनील जी आपको कथा पसंद आई ।
कथा के मर्म तक जाने एवं सराहना हेतु आभारी हूँ आदरणीय नीता कसार जी ।
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