आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,
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आ.शशी जी इस तरह की घटनाओ के बारे मे बहूत पढा, सुना है. संवेदनहीन की हद तक जाने वाली स्त्री ये क्यो भुल जाती है कि..
मगर अब जागने का समय है. इस कुरीति के खिलाफ़ ही षडयंत्र रच. बधाई आपको
/ सास के अमृत वचन " कोयला ही तो था , जल गया / क्या खूब। कितना गम्भीर व्यंग्य छुपा है , मात्र एक पंक्ति में।
फिर ऐसी सास यह भी उम्मीद करती हैं कि बहू मदर्स डे मायके जा कर न मनाए। बहुत खूब शशि जी। सब चुस्त दुरुस्त। कहीं कोई झोल नहीं।
हार्दिक बधाई आदरणीय शशि बंसल जी ! बेहतरीन प्रस्तुति !
यह घिसा पिटा कथानक नहीं है? कथा चौथी लाइन में निहित नायलान की साडी से ही समझ में आ गयी थी. लघुकथा प्रभावित नहीं कर सकी आदरणीया शशि बंसल जी.
"दहेज़ "
राकेश अपनी पत्नी सुनीता को पूरा वीडियो दिखाने के बाद बोला - ' मैं नहीं जानता था कि मेरा जिगरी दोस्त इतना कमीना होगा। नहीं तो मैं अपने हनीमून के लिए उसे होटल बुक करने के लिए कभी नहीं कहता। उसने हमारे कमरे में कैमरे लगा कर ये हमारा अश्लील वीडियो सूट कर लिया और अब मुझे ब्लेकमेल कर रहा है। दस लाख रुपये मांग रहा है। अगर मैंने नहीं दिए तो वीडियो वायरल कर देगा। अगर ऐसा हुआ तो मेरे माता -पिता तो आत्महत्या कर लेंगे , और मैं भी किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहूँगा। मुझे बचालो सुनीता। "
"पर मैं क्या कर सकती हूँ , मैं भी तो बदनाम हो जाऊँगी। "
"हाँ हम दोनों ही बदनाम हो जायेगें , पर मैं दस लाख रुपये कहाँ से लाऊँगा ,मुझे गलत मत समझना। तुम अपने पापा से दसलाख ले आओ उधार ,मैं उनका एक -एक पैसा चूका दूंगा। तुम जानती हो मैं दहेज़ के बिलकुल खिलाफ हूँ।
दूसरे दिन सुनीता अपने मायके से दस लाख का सूटकेश लेकर आई और दरवाजे पर दस्तक देने वाली थी कि उसे लगा भीतर से कुछ आवाजें आ रही है। वह दरवाजे से कान लगाकर सुनने लगी।
"वह दस लाख ले तो आएगी ना ?"
"नहीं कैसे लाएगी माँ ,मैने उसे वीडियो ही ऐसी बनाकर दिखाई है। "
"पर उसे इसकी बिलकुल भनक मत लगने देना की ये सब हमारा किया धरा है। "
"अरे पापा वह सोने के अण्डे देने वाली मुर्गी है , इतनी आसानी से पता थोड़े ही लगने दूंगा। "
सुनीता वहीँ से पलट गई और अपने मायके जा कर राकेश को फोन किया -"हेलो राकेश। "
"हाँ सुनीता तुम आई नहीं अभीतक ? मैं कब से तुम्हारा इंतिजार कर रहा हूँ। "
"मैं अब कभी नहीं आऊँगी , हाँ कल कोर्ट मैं ज़रूर जाऊँगी , तुमसे तलाक लेने के लिए। मैं तुम्हारा षड्यंत्र जान चुकी हूँ। "
"मौलिक व अप्रकाशित "
लघुकथा अच्छी है आ० चौथमल जैन जी, और प्रदत्त विषय को भी संतुष्ट कर रही हैI लेकिन रचना में नाटकीयता थोड़ी ज्यादा हैI
//दूसरे दिन सुनीता अपने मायके से दस लाख का सूटकेश लेकर आई और दरवाजे पर दस्तक देने वाली थी कि उसे लगा भीतर से कुछ आवाजें आ रही है। वह दरवाजे से कान लगाकर सुनने लगी। //
इस दूसरे दिन का ज़िक्र आते ही दो कालखंडों में बंट गई है, ज़रा गौर फरमाएँI आयोजन में सहभागिता हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारेंI
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