For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- हरम में घुंघरुओं से कुछ कुछ तराने छूट जाते हैं ।

1222 1222 1222 1222

अदा के साथ ऐ ज़ालिम, ज़माने छूट जाते हैं ।
मुहब्बत क्यों ख़ज़ानो से ख़ज़ाने छूट जाते हैं ।।

तजुर्बा है बहुत हर उम्र की उन दास्तानों में ।
तेरीे ज़द्दो ज़ेहद में कुछ फ़साने छूट जाते हैं ।।

बहुत चुनचुन के रंज़ोगम को जो लिखता रहाअपना।
सनम से इंतक़ामों में निशाने छूट जाते हैं ।।

रक़ीबों से मुसीबत का कहर बरपा हुआ तब से ।
हरम में घुंघरुओं से कुछ तराने छूट जाते हैं ।।

वो कुर्बानी है बेटी की जरा ज़ज़्बात से पूछो ।
नए घर को बसाने में घराने छूट जाते हैं ।।

गरीबों की खबर से है कमाई का कहाँ नाता ।
के चैनल पर कई आंसू दिखाने छूट जाते है ।।

नहीं साँसे बची हैं अब सबक़ के वास्ते तेरे ।
वफ़ा के फ़र्ज भी अक्सर बताने छूट जाते हैं ।।

मुखौटे ओढ़ के बैठे हुए जो ख़ास है दिखते ।
कई रिश्ते सुना है आज़माने छूट जाते हैं ।।

यहां सावन नहीं बरसा वहां फागुन नहीं आया।
ये रोटी-दाल में मौसम सुहाने छूट जाते हैं ।।

गरीबी आग में झुलसे हुए इंसान से पूछो।
हवा के साथ कुछ सपने पुराने छूट जाते हैं ।।

मकाँ लाखो बना कर बेअदब सी सख्सियत जो हैं ।
बड़े लोगों से अपने घर बनाने छूट जाते हैं ।।

परिंदों का भरोसा क्या कभी ठहरे नही हैं वो ।
बदलते ही नया मौसम ठिकाने छूट जाते हैं ।।

न औकातों से ऊपर उठ मुहब्बत ज़ान लेवा है ।
यहां लोगो से कुछ वादे निभाने छूट जाते हैं ।।

सियासत लाश पर करके वो रोटी सेंक लेता है ।
सियासत दां से क्यूँ मरहम लगाने छूट जाते हैं ।।

खुशामद कर अनाड़ी पा रहे सम्मान सत्ता से ।
ये हिन्दुस्तान है प्यारे सयाने छूट जाते हैं ।।

जो खुशबू की तरह बिखरे फ़िजा से रूबरू होकर ।
नई महफ़िल में वो शायर बुलाने छूट जाते हैं ।।

न कर साकी से तू यारी उसे दौलत बहुत प्यारी ।
यहाँ तिश्ना लबों को मय पिलाने छूट जाते हैं ।।

अदालत में सुबूतो पर है लग जाती सही बोली ।
कई मुज़रिम भी दौलत के बहाने छूट जाते हैं ।।

है क़ातिल का शहर यह ढूढ़ मत अपनी वफादारी ।
मुहब्बत से बचो तो क़त्ल खाने छूट जाते हैं ।।

बयां करके गया है ख़त भी तेरे हुस्न का ज़लवा ।
तुम्हारे हाथ से कुछ ख़त ज़लाने छूट जाते हैं ।।

बहुत मुद्दत से वो लिखता रहा है नाम रेतों पर ।
समन्दर से सभी अक्षर मिटाने छूट जाते हैं ।।

मिला है वह गले मेरे मगर ख़ंजर छुपा करके ।
वो नफ़रत के किले उससे ढहाने छूट जाते हैं ।।

हवाला उम्र का देकर दरिंदे फिर बचे देखो ।
लिखी तहरीर में क्यों ज़िक़्रख़ाने छूट जाते हैं ।।

वो चौराहे पे बैठी थी नकबो से अलग हटकर ।
सुना है उम्र पर फैशन दिखाने छूट जाते हैं ।।

ग़ज़ल की तिश्नगी है बेकरारी का सबब आलिम ।
बिना शबनम स्वरों में गुनगुनाने छूट जाते हैं ।।


--नवीन मणि त्रिपाठी
अप्रकाशित मौलिक

Views: 441

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by आशीष यादव on December 23, 2016 at 1:16am
Har sher lajwab. Bilkul samyik.
Badhai.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
12 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सीमा के हर कपाट को - (गजल)-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/१२२१/२१२कानों से  देख  दुनिया  को  चुप्पी से बोलना आँखों को किसने सीखा है दिल से…See More
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीया प्राची दीदी जी, आपको नज़्म पसंद आई, जानकर खुशी हुई। इस प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपके प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा में हैं। "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आभार "
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय, यह द्वितीय प्रस्तुति भी बहुत अच्छी लगी, बधाई आपको ।"
yesterday

मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"वाह आदरणीय वाह, पर्यावरण पर केंद्रित बहुत ही सुंदर रचना प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई ।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन कुंडलियाँ छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई हरिओम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बेहतरीन छंद हुए है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service