आदरणीय साथिओ,
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वाह ,वाह ! बड़े ही अर्थपूर्ण तरीके से आपने विषय को अमली जामा पहनाया है आ. जानकी जी ! बधाई हो
आदरणीय जानकी वाही जी बहुत ही उपयुक्त चित्रण किया है आप ने . बधाई आप को इस लघुकथा की बेहतर प्रस्तुति के लिए.
बस शिक्षा की तरफ समर्पित एक सच्चे शिक्षक का दर्द ..बहुत कुशलता से बुना है आपने कथानाक .. बहुत प्रभावी रचना ...हार्दिक बधाई आदरणीया जानकी जी
बहुत खूब जानकी जी, प्रदत्त विषय से पूर्ण न्याय करती हुई लघुकथा कही है जो एक सार्थक सन्देश भी देती हैI जिस हेतु आपको ढेरों ढेर बधाई. एक बात आपसे अवश्य कहना चाहूँगा, खाना भले ही कितना स्वादिष्ट और पौष्टिक क्यों न हो यदि परोसने का ढंग फूहड़ हो तो किये कराये पर पानी फिर जाता है. यथोचित विराम चिन्हों का उपयोग जहाँ रचना को प्रेजेंटेबल बना देता है वहीँ इनका अनुपयुक्त व अशुद्ध प्रयोग पाठक में अरुचि पैदा करता देता है. अपनी ही रचना का कॉम्पैक्ट स्वरूप देखें, कोई अंतर लगा हो तो कहें:
"सुनिए! अंदर आ जाइये बाहर बहुत मच्छर हो गए हैं।" पत्नी ने आवाज़ लगाई।
कोने पर बने उस घर के दोनों ओर की सड़क से गाड़ियाँ फर्राटे से गुजर रही हैं लगा पति ने सुना नहीं वे निर्विकार भाव से बैठे रहे। महाभारत के अर्जुन की तरह उनकी आँखें घर के गेट की तरफ लगी हैं। बाकि हर चीज़ से अनजान।
कुछ समय बाद पत्नी ने बाहर झाँका और फिर बोली: "देखिये अँधेरा होने लगा है, अब तो अंदर आइये।"
"सुनो! दीपक क्यों नहीं आया होगा? चार दिन से उसकी राह देख रहा हूँ।" चश्मे को रुमाल से साफ़ करते हुए बोले।
"अब मुझे क्या पता?” बात टालने के लिए पत्नी ने कहा। और फिर पति को उठने में सहारा देते हुए बुदबुदाई:
"अब आप तो उसके अच्छे के लिए ही पढ़ा रहे थे। ये आजकल के बच्चे भी मुफ़्त मिली चीज़ की कद्र ही नहीं करते।"
"जानती हो, पढ़ाना तो एक बहाना था, गणित मेरा विषय नहीं रहा, फिर भी तैयारी करके उसे समझा रहा था।"
"हाँ, जानती हूँ। "
"उसके आने से अकेलापन कम लगता थाI वर्ना घर की ख़ामोशी काट खाने को दौड़ती है।" पत्नी के कन्धे का सहारा लेकर चलते हुए बोले।
पत्नी से रहा नहीं गया, बोली: ’’दीपक की माँ से मेरी बात हुई थी। वह कहता है कि... " पत्नी कहते-कहते जैसे रुक गई।
"क्या कहता है?" पति के कदम भी ठिठक गए।
"कहता है कि अंकल को ठीक से सुनाई नहीं देता, मैं पूछता कुछ और हूँ वे बताते कुछ और हैं। मेरी समझ में कुछ आता ही नहीं। और वह क्या मैं भी तो कह-कहकर थक गई हूँ कि आप...’’
तभी गेट की घण्टी बजी दोनों ने मुड़कर देखा नौ-दस साल एक का बच्चा अपनी माँ के साथ खड़ा था। माँ बोली:
‘’सुना है आप यहाँ गरीब बच्चों को पढ़ाते है?"
‘’हाँ, पढ़ाते हैं।‘’ जवाब पत्नी ने दिया।
पति के चेहरे पर बालसुलभ मुस्कान उभर आई। पत्नी को देखते हुए बोले:
"सुनो, कान की मशीन बनवाने चलेंगे कल।"
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