आदरणीय साथिओ,
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आदरणीया अर्चना जी .. खुलकर प्रतिक्रिया दीजिये ..इस मंच पर हम सब अभ्यासी है और एक दूसरे की टिप्पणियों से ही सीखते है प्रतीक्षा रहेगी रचना पर आपके पुनः आगमन की
आदरणीया प्रतिभा जी, तीन बुजुर्गों के कथोपकथन से गुंथी हुई इस लघुकथा की मार्मिक पंक्ति कहीं भीतर तक उद्वेलित करती है- // “कोई पेंशन वाली सरकारी नौकरी करी होती तो कम से कम एक दिन तो घर में हमारा भी इंतज़ार होता और हमें भी लौटने की जल्दी होती”I// उस पीड़ा को मिले शब्द प्रदत्त विषय के साथ पूरा न्याय करते हैं. इस सफल लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई. सादर
हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी
हार्दिक धन्यवाद आपका
वाह बुजुर्गों की मनोदशा का बड़े ही रोचक तरीके से चित्रण किया है आपनें। इस हेतु बधाई प्रेषित है। सादर
हार्दिक आभार आदरणीय सुधीर जी
आखरी पंक्ति ने बुजुर्गों की पीड़ा को मुखर कर दिया. बहुत ही उम्दा प्रस्तुति. बधाई आप को इस लघुकथा के लिए.
हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी
हार्दिक आभार आदरणीया सीमा जी
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