आदरणीय साथिओ,
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अच्छी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई!
लघुकथा में गैर जरूरी तथ्यों की आवश्यकता नहीं होती. शरीयत का जिक्र भी इसी तरह का शब्द है. कुछ प्रश्न लघुकथा पढ़ने के बाद उठाते हैं. मसलन- इतना समझदार युवक आखिर कोर्ट में शादी क्यों नहीं करना चाहता? आखिर बहुत बड़े घर में ही रिश्ता करने को वह क्यों राज़ी हुआ? उसका विरोध भी वह कर सकता था. छोटे घर में शादी करना उसने क्यों पसंद नहीं किया? लड़की वालों से तोहफा लेना और चुपके से उसका बिल खुद चुकाना कोई सार्थक बदलाव नहीं लाता बल्कि यह इस बात का प्रमाण है कि युवक ने अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक कुरीतियों के सामने घुटने टेके हैं, समझौता किया है.
प्रगतिशीलता और प्रतिरोध एक सतत प्रक्रिया है, वह छिटपुट नहीं होता. रचना का उद्देश्य सार्थक सामाजिक परिवर्तन होता है. सतही वैचारिकता रचना को कमजोर करती है इसलिए जरूरी है कि हम अपनी सोच और दृष्टि को साफ़ रखें.
क्षमा सहित सादर!
:))))))))))))
आपने सही कहा ,मर्यादित होकर विरोध करना अलग बात है।
आदरणीया राहिला जी, लघुकथा का सुखान्त दिल को भा गया. ऐसी रचनाएँ समय की मांग है और आवश्यक भी. इस प्रेरक लघुकथा हेतु आपको हार्दिक बधाई. और शानदार सुखान्त हेतु विशेष बधाई. सादर
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