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हर पर्व से पहले आते थे तुम

हँसती-हँसती, मैं रंगोली सजा देती ...

नाउमीदी में भी कोई उमीद हो मानो

मेरी अकुलाती इच्छाएँ तुम्हारी राह तकती थीं

श्रद्धा के द्वार पर अभी भी मेरे प्रिय परिजन

सूर्य की किरणें ठहर जाती हैं

चाँद जहाँ भी हो, पर्व की रातों कोई आस लिए

आकर छत पर रुक जाता है

तन्हा मैं, सोच-सोच में

ढूँढती हूँ बाँह-हाथ तुम्हारे

स्पर्श से पूर्व विलीन हो जाते हैं स्पर्श

उदास साँवले दिन की कलौंस

अन्धकार-अम्बर में हर रोज़

एक और लेप लगा जाती है

आन्तरिक खामोशी की दीवार

समय से और मोटी हुई जाती है

स्नेहिल शब्द ओंठों से तुम्हारे

सुखद बारिश-से बरसते

महकते थे वीरान हवाओं में भी

पर प्रणय के सूर्योदय से पहले ही

तुम चले गए क्षितिज के उस पार

दूर, बहुत दूर कहीं, मेरी पहुँच से परे

अनगिन अग्निमय फ़ासले, सदैव के लिए

मेरी सिकुड़ती बदनसीब सोच से भी परे

समय के खँडहरों के उजाड़ प्रसारों मे

मेरी आत्मा के कण्टकित एकान्तों में

ढूँढती रहती हूँ तुम्हारे वही स्नेहिल शब्द

आँसुओं-सिंचे अब दुखजनित शब्द

हृदय में बहती रहती है तुम्हारे प्रति स्नेह-लहरी

ममतामयी गंगा की लहरों-सी

तुम्हारे संवेदनमय सुगंधित शब्दों का विस्तार

मुस्काता है हर दिन मेरे क्षितिज के आर-पार

---------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by vijay nikore on August 2, 2017 at 11:05am

अभी अपनी पुरानी पोस्ट से गुज़रा तो देखा कि मुझको आपसे मिली सराहना का आभार प्रकट करना रह गया। क्षमाप्रार्थी हूँ, आदरणीय नरेन्द्र्सिहं जी। हृदयतल से आपका धन्यवाद।

Comment by vijay nikore on August 2, 2017 at 11:04am

// ह्रदय की संवेदनाओं को बहुत ही खबसूरती से शब्दों में पिरोया है //

अभी अपनी पुरानी पोस्ट से गुज़रा तो देखा कि मुझको आपसे मिली सराहना का आभार प्रकट करना रह गया। क्षमाप्रार्थी हूँ, आदरणीय बृजेश जी। हृदयतल से आपका धन्यवाद।

Comment by vijay nikore on March 5, 2017 at 7:30am

रचना को समय देने के लिए आपका हार्दिक अभार, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 7, 2017 at 8:25pm

संचारी भावों में  'स्मृति' ' आपकी साधना का  प्रमाणिक दस्तावेज है . शुक्र है सर इस बार आप फनी विहीन सर्प की भाँति  सिर पटकते नजर नहीं  आये , इस बार स्मृतियाँ राहत सी दे रही हैं  . आ० निकोर जी . 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 4, 2017 at 10:07pm
ह्रदय की संवेदनाओं को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है आदरणीय..बहुत ही सुन्दर
Comment by narendrasinh chauhan on February 4, 2017 at 6:46pm

खूब सुन्दर रचना। ..

Comment by vijay nikore on February 3, 2017 at 9:42am

//हमेशा की तरह कविता पाठक को बांधे रखती है एक संवाद स्थापित कर लेती है//

आपसे मिली यह प्रतिक्रिया मेरे लिए पारितोषिक है। हार्दिक आभार, आदरणीया राजेश जी

Comment by vijay nikore on February 3, 2017 at 9:41am

//सरल शब्दों में गहन भावों की सरिता जो दूर तक अपने साथ ले जाती है। इस अप्रतिम प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई//

इस प्रकार अमूल्य प्रतिक्रिया से मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी

Comment by vijay nikore on February 3, 2017 at 9:39am

//हर बार की तरह एक प्रभावशाली प्रस्तुति जो पाठक को बहा ले जाती है अपने साथ//

इन सुन्दर शब्दों से मुझको प्रोत्साहन देने के लिए आपका हार्दिक आभार, मित्र मिथिलेश जी

Comment by vijay nikore on February 3, 2017 at 9:36am

//हमेशा की तरह आपकी ये कविता भी दिल को छू गई//

रचना को मान देने के लिए आपका हादिक आभार, आदरणीय भाई समर जी

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