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 नई शुरुआत-----

 

जो हो चुका सो हो चुका,

तुम इक नई शुरुआत करो.

हर चीज बदलती है,

अपनी आखिरी साँस के साथ,

तुम फिर से कोई जुदा बात करो.

उजड़ गया गर शहरे-आलम सारा,

तुम फिर नया अहसास गढ़ों.

पकड़ो किसी का हाथ फिर से,

कदम मिला कर साथ बढों,

पानी में घुले नमक को तुम

अलग नहीं कर सकते,

पैदा फिर नये जज्बात करो.

जो हो चुका सो हो चुका,

तुम इक नई शुरुआत करो.

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by Naval Kishor Soni on March 14, 2017 at 5:59pm

आदरणीय समर कबीर जी और मोहम्मद आरिफ जी आप दोनों का शुक्रिया.

Comment by Samar kabeer on March 14, 2017 at 5:48pm
जनाब नवल किशोर सोनी जी आदाब,अच्छी रचना हुई बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on March 14, 2017 at 5:48pm
जनाब नवल किशोर सोनी जी आदाब,अच्छी रचना हुई बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Mohammed Arif on March 14, 2017 at 5:13pm
आदरणीय नवल किशोर सोनी जी आदाब, आशा का संचार करती, सकारात्मक दृष्टिकोण को उजागर करती रचना के लिए बधाई ।

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