आदरणीय साथिओ,
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मोहन जी जैसे ढेरों चरित्र हमारे इर्द गिर्द हैं नकारे जाने या प्यार किये जाने के पचड़े में न पड़कर महिलाओं को स्वयं के लिए खड़ा होना पड़ेगा ..बहुत अच्छी लगी आपकी कथा ...चाय का प्रतीक भी अच्छा लगा हार्दिक बधाई आदरणीया अपराजिता जी
हार्दिक बधाई आदरणीय अपराज़िता जी।आपकी लघुकथा मुझे सदैव प्रभावित करती हैं।आप की लेखन शैली का अपना अलग अंदाज़ है।विषय को आप बेहद बारीकी से प्रस्तुत करती हैं।बहुत सुंदर।
आदरणीय अपराजिता जी, बहुत ही सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक आधारित है आपकी प्रस्तुत लघुकथा । /दोनों बच्चों का सहमी नजरों से देखना, बाय कह कर बाहर निकल जाना, मोहन का 'मुझे देखते ही तुम तीनो काे सांप सूंघ जाता है...' कहना / माेहन के खोखले दंभ की टीस और अकेलेपन के दंश को सरसता से पेश कर रहा है । लघुकथा में प्रयुक्त /आज बीरबल की चाय बन जाएगी ?/ ने मुझे बहुत प्रभावित किया क्योंकि मुहावरे, लोकोक्ितयां एवं पहेलियां लघुकथा को अधिक प्रभावशाली बनाती हैं । इनके प्रयोग से एक ओर लेखक की प्रतिभा का परिचय मिलता है वहीं इससे रचना में भी निखार आता है । इससे अभिधा से परे लक्षणा एवं व्यंजना शब्द शक्ित का प्रयोग अधिक होता है । मुहावरे, लोकोक्ितयां एवं पहेलियां रचना में जान डाल देते हैं उनके प्रभाव से भाषा व रचना प्रभावशाली एवं चुस्त दुरूस्त बनती है। इनके प्रयोग से भाषा व रचना के अर्थ को स्पष्टता प्राप्त होती है । शुभकामनाएं
आदरणीय अपराजीताजी, आप ने बहुत अच्छी लघुकथा लिखी है. बधाई आप को.
आपके पास सोना तो 24 कैरेट है अपराजिता जी। बस थोड़ा अभ्यास करेंगी तो वसुधा जी के लिए सुंदर मंगलसूत्र बनाना भी सीख जाएंगी और मोहन जी के लिए नाक की नथ भी। रास्ता बहुत लम्बा है , मेरी शुभ कामनाएं लेती जाइए। और हां , कोशिश कीजिए यहां हर रचना पर यह बताने की कि आपको उसमें क्या अच्छा लगा और क्या खराब। आपकी रचनाएं खुद ही संवरने लगेंगी।
आदरणीया अपराजिताजी
सही निर्णय लिया वसुधा ने, ऐसे पति की उपेक्षा कर ही उसे रही पर लाया जा सकता है। अच्छी लघु कथा । ह्रदय से बधाई इस प्रस्तुति पर ।
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