आदरणीय साथिओ,
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मैं इस मंच के माध्यम से पहले भी कई बार निवेदन कर चुका हूँ कि एक सफल लघुकथा के लिए विद्वान् लोग निम्नलिखित तीन बातों को बेहद ज़रूरी माना हैं:
संक्षिप्तता
सूक्ष्मता
संयमता
मोटे तौर पर “संक्षिप्तता” का सम्बन्ध लघुकथा के आकारगत स्वरूप से अथवा अनावश्यक विस्तार के बचने से है, “सूक्ष्मता” से अभिप्राय लघुकथा में निहित संन्देश को विद्वतापूर्ण बारीकी से कहने से है, लेकिन inलघुकथा में इन सब से भी कहीं महत्वपूर्ण है “संयमता”. संयमता के अंतर्गत रचनाकार को हर बात संयम से कहनी/करनी होती है. उसे यह ध्यान में रखना होता है कि उसका हर कथ्य पूरी तरह तथ्य पर आधारित हो, रचना में नाटकीयता न हो बल्कि स्वाभाविकता ही हो, रचना में कहीं अतिशोक्ति का अंश न हो, कथ्य में विरोधाभास न हो, हर एक बात शालीनता से कही जाए. अपने साले का “मेरा साला” कहकर परिचय करवाना गलत तो नहीं, लेकिन “बच्चों के मामा जी” कहकर परिचय देना सभ्य भी है और शालीन भी हैI, बस यही लघुकथा में “संयमता” है.
अब यदि उपरोक्त तीनो बिन्दुओं के मुताबिक आपकी रचना को देखा जाए तो:
1. संक्षिप्तता के हिसाब से 524 शब्दों की यह रचना कोई बहुत ज्यादा लम्बी नहीं है. (हालाकि सम्पादन की गुंजाइश अभी भी है).
2. रचना में सूक्ष्मता का पुट है, गाँधी की तस्वीर पर धूल जमे होना बहुत कुछ कह गया है.
3. संयमता के दृष्टिकोण से यह बेहद कमज़ोर रह गई है, क्योंकि:
मुख्य पात्र के धर्म का उल्लेख करने से रहना एकपक्षीय हो गई है. जहाँ एक पक्ष को सही और दूसरे को गलत ठहराया गया है. इससे रचना का दायरा संकुचित हो जाता है. रचनकार का जजमेंटल होना भी संयमता की हद से बाहर जाना ही माना जाता है. बात इस ढंग से कहनी चाहिए जो दोधारी तलवार की तरह दोनों तरफ से मार करे.
उसकी माँ की म्रत्यु बम धमाके में हुई, इसका उल्लेख आपने सातवीं पंक्ति में ही कर दिया (अर्थात एलिमेंट ऑफ़ सरप्राइज़ जाता रहा), लेकिन बाद में सिपाही राधेश्याम उसकी माँ की मौत का करण शहर में हुए दंगों को बताता है (बात विरोधाभास वाली हो गई न?)
मुझे आपसे हमेशा बहुत बेहतर की उम्मीद रहती है, अत: मेरा सुझाव है कि इस कथा पर पुन: गौर करें और देखें कि आपको जो सन्देश देना है क्या वह पढने वालों तक पहुंचा कि नहीं? बहरहाल, आयोजन में सहभागिता हेतु हार्दिक बधाई प्रेषित है भाई महेंद्र कुमार जी.
आ. योगराज सर, मैं जब भी कोई लघुकथा लिखने बैठता हूँ तो आपके इन बिन्दुओं सहित अन्य सुझावों को हमेशा ध्यान में रखता हूँ पर फिर भी कहीं न कहीं गलती हो ही जाती है. इसके लिए मैं क्षमाप्रार्थी हूँ और भविष्य में इनका अधिक ध्यान रखूँगा.
// उसकी माँ की म्रत्यु बम धमाके में हुई, इसका उल्लेख आपने सातवीं पंक्ति में ही कर दिया (अर्थात एलिमेंट ऑफ़ सरप्राइज़ जाता रहा), लेकिन बाद में सिपाही राधेश्याम उसकी माँ की मौत का करण शहर में हुए दंगों को बताता है (बात विरोधाभास वाली हो गई न?)//
सर, उसकी माँ की मौत दंगे के कारण ही हुई थी, किसी बम धमाके में नहीं. अब चूंकि इस बात का पता अन्त में चलता है इसलिए मुझे लगता है कि यहाँ एलिमेंट ऑफ़ सरप्राइज़ बरकरार है और साथ ही कोई विरोधाभास भी नहीं है.
यहाँ पता नहीं यह बताने की आवश्यकता है या नहीं मगर फिर भी मैं यह कहना चाहूँगा कि यह एक ऐसे युवक की कहानी है जिसने दंगे में अपनी माँ को, जिसे वह बहुत प्यार करता था, खो दिया है. दुर्भाग्य से इस घटना में उसके दोस्त भी शामिल रहे. "हाँ, मैं मुस्लिम हूँ झूठ नहीं बोलता और न ही हिन्दुओं की तरह पीठ में खंजर घोंपता हूँ।" लघुकथा की यह पंक्ति किसी समुदाय विशेष के लिए नहीं बल्कि उसके इन्हीं दोस्तों के लिए थी. इस घटना से उसे बहुत गहरा सदमा लगा. वह इससे उबर सकता था लेकिन उसके आस-पास के बढ़ते साम्प्रदायिक माहौल ने ऐसा होने नहीं दिया. फलतः उसके अवचेतन में नफ़रत से मिश्रित बदले की भावना घर कर गयी और उसने आतंक का रास्ता चुन लिया. मगर, आतंक का यह रास्ता उसके मस्तिष्क में था, यथार्थ जीवन में नहीं. इसलिए उसने किसी को नहीं मारा. उसने जितनी भी घटनाओं को अंजाम दिया वो सब की सब उसकी कल्पनाएँ थी. शीर्षक में भले ही 'टेररिस्ट' शब्द हो मगर यह अवसाद से ग्रस्त एक बीमार युवक की कहानी है किसी आतंकी की नहीं. "तुम पागल तो नहीं हो? जिन तीन शहरों का नाम तुमने लिया है उनमें से दो में कभी कोई आतंकवादी घटना हुई ही नहीं और एक में ऐसी किसी घटना को घटे हुए बीस साल से भी ज़्यादा का समय बीत चुका है।" ये पंक्तियाँ इसी बात की तस्दीक़ करती हैं कि वह अपना मानसिक संतुलन खो चुका है और साथ ही यह भी, "जब पिछली बार शहर में दंगे हुए थे तो दंगाइयों ने बड़ी बेरहमी से इसकी माँ को मार डाला था।"
आपकी मुख्य आपत्ति संयमता को लेकर है. इस सम्बन्ध में मैं यही कहना चाहूँगा कि
1. मुख्य पात्र किसी भी धर्म का हो सकता है अथवा उसे छुपाया भी जा सकता है मगर तब जब यह कहानी सिर्फ दंगों पर केन्द्रित होती किन्तु कहानी के पार्श्व में सम्प्रदाय विशेष के प्रति बढ़ती हुई साम्प्रदायिक हिंसा भी है जिसका कि मुख्य पात्र प्रतिनिधित्व करता है. कहानी का मूल विषय समाज में बढ़ती हुई नफ़रत और उससे उपजी एक भयावह स्थिति है जिसमें कोई व्यक्ति स्वयं को एक आतंकवादी समझने लगता है. हमें इससे बचने की आवश्यकता है. यही इस कहानी का मूल उद्देश्य है.
2. कहानी में मैंने किसी पक्ष को सही या गलत नहीं ठहराया है बल्कि एक पात्र विशेष की दृष्टि से कहानी कहने की कोशिश की है जो कि मनोरोगी है. कहानी में जो भी एकांगिकता है वह उसके दृष्टिकोण से है.
3. कहानी में मुझे नहीं लगता कि मैंने कहीं भी जजमेंट देने की कोशिश नहीं की. मैंने यह कहीं नहीं कहा कि दंगों में किस पक्ष की गलती थी या किसी सम्प्रदाय विशेष के सभी लोग बुरे होते हैं.
मैंने यह टिप्पणी अपनी अल्प समझ के अनुसार ही की है, अतः कहीं भूल हो गयी हो तो क्षमा कीजिएगा. यदि कहानी के मूल भावों को सुरक्षित रखते हुए इसे और बेहतर बनाया जा सकता है तो मैं इसे अवश्य समझना चाहूँगा. आपके स्नेह और लघुकथा पर अमूल्य समय देने हेतु मैं हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
जी.एस.टी ट्रेनिंग की वजह से बेहद व्यस्त रहा अत: उत्तर नहीं दे पाया, आयोजन के बाद इस रचना पर खुलकर बात करूंगा भाई महेंद्र कुमार जी.
आदरणीय भाई साहब, इस लघुकथा के बहाने आप ने एक पाठ ओर सीखा दिया. आभार इस बेहतर सुझाव के लिए.
आ. राज्यवर्धन जी, आपकी पिछली लघुकथा "खैरख्वाह" में 'खुर्रम' आदि शब्द पर मैंने कोई सीधी टिप्पणी नहीं की थी बल्कि आ. योगराज सर की टिप्पणी का अनुमोदन किया था. आपकी वह कहानी आतंकवाद से सम्बन्धित थी. यह एक वैश्विक समस्या है. यदि आप पात्र और स्थान का नाम न लिखते तो आपकी रचना का फलक निश्चित ही बढ़ जाता. इसलिए सर ने आपको या सुझाव दिया था जिससे मैं भी सहमत था. मैं अपनी उस राय पर अब भी कायम हूँ. रही बात इस लघुकथा की तो यह आतंकवाद पर केन्द्रित नहीं है. शेष बातें मैंने आ. योगराज सर की टिप्पणी में स्पष्ट करने की कोशिश की है. आप चाहें तो देख सकते हैं. आपको लघुकथा अच्छी लगी, आपका हृदय से आभार. बहुत-बहुत- धन्यवाद. सादर.
भाई राज्यवर्धन जी, जिस सुझाव को मैं दूसरों को दूँगा उसे स्वयं कैसे भूल सकता हूँ. रही बात वैश्विक अथवा स्थान विशेष की तो इस पर अन्तिम फैसला लेखक को ही करना होता है, पाठक तो केवल सुझाव मात्र देता है. यदि आपको लगता है कि स्थान विशेष का नाम देना उचित है तो ठीक है.
आ. नीता जी, आ. योगराज सर की बातों पर कोई भला कैसे गौर नहीं करेगा. आपको यह प्रयास पसन्द आया, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद. हार्दिक आभार. सादर.
हार्दिक बधाई आदरणीय महेंद्र कुमार जी ।लघुकथा की गहन बातें अभी भी मेरी समझ से परे हैं।उस पर गुणी लोग ही मार्ग दर्शन कर सकते है।
बिलकुल. लघुकथा की गहन बातों पर गुणी लोग ही मार्गदर्शन कर सकते हैं. मुझे भी इंतज़ार है. रचना पर समय देने के लिए आपका हृदय से आभार आ. तेज वीर सिंह जी. सादर.
आदाब आ. समर कबीर सर. लघुकथा को पसन्द करने के लिए आपका हृदय से आभारी हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद. सादर.
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