आदरणीय साथिओ,
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/ उसे लगा एक बार फिर भाई का शव घर के भीतर लाया जा रहा है/ लघुकथा का अंत बहुत ही जर्बदस्त है । संवेदनाभरपूर इस लघुकथा के लिए आपको हृदय से शुभकामनाएं निवेदित हैं । सादर
बहुत मार्मिक लघु कथा भावुक कर दिया इसने मुझे अपना छोटा भाई याद आ गया | बस शुभकामनाएँ
जीवनदान
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सरला बिलख –बिलख कर रोये जा रही थी । उसके मुंह से शब्द न निकल रहे थे । बस आंखों से अविरल जल धारा बहती जा रही थी । बार-बार आसमान की तरफ हाथ उठा कर अपना आंचल फैलाती ,
प्रभु ! मेरा जीवन ले ले , पर उसे मुझे लौटा दे जिसने अभी-अभी दुनिया में आंखे खोली है ।’
गिरती पड़ती किसी तरह अपनी सास के पास पहुंची,
‘ माई ! मुझे मेरी बच्ची लौटा दे, कुछ भी कर !!’
माई बेबस सी बैठी थी । क्या कर सकती थी? कभी मुंह न खोला था किसी के सामने । बाप और बेटा दोनों जिद्दी ! कि बेटी नहीं जिएगी । उनका कहना था बेटा कुल का दीपक होता है वो कैसा भी हो ? अपनी बच्ची आज भी भूली न थी । अक्सर कलेजा हूक उठता था । कुछ न कर पाने का दर्द था ।
“ नामुराद कहीं का !” माई मन ही मन बुदबुदायी । अचानक कुछ सोच कर उठी ।
“ मरे !! तेरे जैसा कुलदीपक कहाँ से पैदा होगा अगर बेटी नहीं जिएगी , देखती हूँ मेरी पोती कैसी नहीं जिएगी, लगा हाथ !” दहाड़ उठी माई और लट्ठ उठा लिया।
“ लगा हाथ !! अभी फोड़ती हूँ तेरा सिर !” सब सकते में आ गये, जिसने कभी जुबान न खोली थी वो घायल शेरनी की तरह दहाड़ रही थी ।
बेटे ने बहदुरी दिखाई
“ का माई ! पगला गयी हो , चलो हटो किनारे । ये मर्दों का काम है हम सुलटा लेंगे । तू अंदर जा ।”
ज़ोर का लट्ठ उसके पीछे जड़ दिया माई ने,
“ परे हट ! बड़ा आया सुलटा लेंगे । ये हम औरतों का मामला है हम सुल्टाएंगे तू या तेरा बाप नहीं । चल सरला उठा बच्ची को ! “ गुस्से से चेहरा तमतमा रहा था । किसी की हिम्मत नहीं हुयी कि माई को रोके । क्योंकि जब बाढ़ बांध तोड़ती है तो विनाश लाती है । सरला ने लपक कर बच्ची को उठा लिया और अपने कलेजे से चिपका लिया । उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगी । आँसू अब भी बह रहे थे । पर वो उसके ममत्व के सुख को जीने के ।
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मौलिक एवं अप्रकाशित
----- अन्नपूर्णा बाजपेयी
आदरणीय ओम प्रकाश जी लघु को पढ़कर मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार ।
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