For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रतीक्षातुर पलों में, नींदों में

आर-पार जाती पारदर्शी सोच में

परस्पर आत्मीय पहचान 

हम दोनों के ओंठ मुस्करा देते

हवा में आगामी प्रातों की ओस-सुगन्ध

हमारी बातों में कहीं  "न"  नहीं  थी

कभी कोई इनकार नहीं था, पुकार थी बस

धधकते हुए सूरज में प्रखर तेज था तब

उस प्रदीप्त धूप की छाती में

कुछ भसम करने की चाह नहीं थी

मैदानों को चीरती हवाओं में

थी रोम-रोम में उमंग 

सूरज की उजाड़ किरणों में अब

अपने ही कंधों पर बोझ बने

स्नेह के पीले उतरे चेहरे में

खोजता फिरता हूँ  अर्थ  कहीं ...

कहाँ, क्यूँ और कैसे अचानक अनजाने

केवल हमारे रास्ते ही नहीं

तुम्हारे-मेरे शास्त्र, संबल-सिधांत हमारे

हो गए तार-तार सभी के सभी कुछ ऐसे

कि जैसे हमारे मज़हब ही अब अलग हुए

पर मज़हब तो प्रिय, विशाल-पर्वतों-से ऊँचे

युगानयुग से सनातन

हवाओं की ओज़ार-सी तेज़ रफ़्तार में भी

निर्बाध, निर्बंध, निश्छल

प्यार ही सिखाते हैं न

फिर अब सांवली दरारों में से

हाँफती यह उसाँस कैसी ?

कुचले हुए इरादों में अब

प्यार के वायदों की वारदातें

तुम्हारी साँसों की आवाज़ों में भी

कठिन कंटीले दुखों की कथाएँ

मौसम यहाँ कोई भी क्यूँ न हो

मैं आदतन, अब सिर्फ़ आदतन

मामूली सच्चाइयों में भी

कुरेदता हूँ फैले टूटे विश्वास के

दु:खजनित आसमान को ...

ज़िन्दगी के ज़हरीले बुरादे में दबे पड़े हैं

हमारे प्यार के मज़हब के अवशेष

अनगिनत अधजले ठूँठ

           -------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 466

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 17, 2017 at 11:18am

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्रसिंह जी। 

Comment by narendrasinh chauhan on August 16, 2017 at 7:27pm

बहोत खूब सुन्दर रचना 

Comment by vijay nikore on August 8, 2017 at 11:06pm

// क्या ख़ूब गहरे अहसासों का झरना बहा है । अच्छे नवीन बिम्बों-प्रतीकों का प्रयोग भी साफ दिखाई दे रहा है । //

आप जैसे सुधि पाठकों का साथ रहे, आश्रीवाद रहे।

रचना को मान देने के लिए आपका हृदयतल से आभार, आदरणीय भाई मोहम्मद जी।

Comment by Mohammed Arif on August 8, 2017 at 10:29am
आदरणीय विजय निकोर जी आदाब, क्या ख़ूब गहरे अहसासों का झरना बहा है । अच्छे नवीन बिम्बों-प्रतीकों का प्रयोग भी साफ दिखाई दे रहा है । भावों के साथ मज़हब को लेकर भी सकारात्मक सोच । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service