For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्नेहसिक्त भाव

तुमसे मिलने की उदात्त प्रत्याशा ...

प्रेरणा के प्रहर थे 

स्वत: मुस्कराने लगे

तुम्हारे आने का मौसम ही होगा

वरना वीरान हवाओं में

ध्वनित-प्रतिध्वनित न होते 

यूँ वह गीत-आलाप सुरीले पुराने 

उस अमुक अरुणोदय से पहले ही एक संग

हर फूल, कली, हर पत्ते का झूम-झूम गाना

हाथ-में-हाथ पकड़ खेलना, तुम्हें गुनगुनाना

और नवजात-सी उत्सुक पक्षिणियों का 

सांवले पंख फैला

चोंच-मार खेलना, चहचहाना ...

स्नेहसिक्त

शायद इसी को कहते होंगे ...

कि अच्छा लगता था सभी कुछ परस्पर

हँसना, रोना ..या कभी मुझ पर तुम्हारा

कारण-आकारण छोटा-सा

प्यार का गुस्सा

और फिर अगले ही पल मेरे गले में वह

प्यार की बाहें, या दोनो हाथों से 

मेरे गालों पर वह प्यार की चपत ...

और जो मैं कुछ बोलने को हूँ तो

मेरे ओंठों पर शरारत भरी अंगुली

मेरे ओंठ बंद कर देती थी तुम

स्नेहसिक्त

शायद इसी को ही कहते होंगे ...

                  ----------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 683

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on August 17, 2017 at 11:18am

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय नरेन्द्रसिंह जी। 

Comment by narendrasinh chauhan on August 16, 2017 at 7:31pm

इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें

Comment by vijay nikore on August 9, 2017 at 1:49pm

//बहुत उम्दा और खूबसूरत रचना से आपने रूबरू कराया। //

सराहना के लिए हार्दिक आभार, आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी।

Comment by vijay nikore on August 9, 2017 at 1:47pm

// बहुत ही बेहतरीन और भावपूर्ण कविता । इस कविता में आपके व्यक्तित्व का नया स्वरूप नज़र आ रहा है ।//

मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आपका हृदय तल से आभार, आदरणीय भाई मोहम्मद आरिफ़ जी।

Comment by vijay nikore on August 7, 2017 at 1:15pm

सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय  मोहित जी

Comment by नाथ सोनांचली on August 7, 2017 at 8:03am
आद0विजय निकोर जी सादर अभिवादन, बहुत उम्दा और खूबसूरत रचना से आपने रूबरू कराया। बधाई इस सृजनपर
Comment by vijay nikore on August 7, 2017 at 7:50am

आदरणीय भाई समर जी, ओ बी ओ मंच की यही खूबी है कि अच्छे सुझाव देकर मित्र मार्गदर्शन करते हैं। मुझको भी कविता तवील लगी और मैं स्वयं अशांत था, जब तक इसको काट-छाँट कर पुन: पोस्ट नही क्या। लेखन में जबतक मेरा "सर्वोच्च" पन्ने पर न आए, मेरा मन भीतर ही भीतर गलता रहता है।सराहना के लिए और सच्चाई के लिए आभारी हूँ, आदरणी भाई, समर जी।

Comment by Mohammed Arif on August 6, 2017 at 11:07pm
आदरणीय विजय निकोर जी आदाब,बहुत ही बेहतरीन और भावपूर्ण कविता । इस कविता में आपके व्यक्तित्व का नया स्वरूप नज़र आ रहा है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Samar kabeer on August 6, 2017 at 6:34pm
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,एक नज़र में कविता बहुत तवील(लम्बी)लगी,लेकिन जब पढ़ने लगा तो इसकी रवानी में बहता चला गया,सही कहा आपने हर धर्म प्रेम की ही शिक्षा देता है,बहुत ही जज़्बाती और वैचारिक कविता लिखी है आपने,आपकी शैली का अनोखा पन साफ़ दिखाई दे रहा है,बहुत ख़ूब वाह, इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
52 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
16 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, इस प्रस्तुति को समय देने और प्रशंसा के लिए हार्दिक dhanyavaad| "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपने इस प्रस्तुति को वास्तव में आवश्यक समय दिया है. हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी आपकी प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद. वैसे आपका गीत भावों से समृद्ध है.…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त चित्र को साकार करते सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"सार छंद +++++++++ धोखेबाज पड़ोसी अपना, राम राम तो कहता।           …"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"भारती का लाड़ला है वो भारत रखवाला है ! उत्तुंग हिमालय सा ऊँचा,  उड़ता ध्वज तिरंगा  वीर…"
Friday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
Friday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service