आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय वीरेंदर वीर मेहता जी, आपकी टिप्पणी हृदय को आनंदित कर गयी. बहुत बहुत आभार.
बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर, बधाई आपको आ
बहुत बहुत आभार आदरणीय विनय कुमार जी.
बहुत बढ़िया लघु कथा , शीर्षक को पूर्णतया परिभाषित करती हुयी ।
बधाई स्वीकारें आदरणीय बागी जी ।
बहुत बहुत आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी. आपकी टिप्पणी सदैव उत्साहवर्धन करती है.
समझौता – लघुकथा -
"सुषमा, तुम्हारे बारे में एक बहुत ही चौंकाने वाली बात सुनी है। क्या यह सच है"?
"ऐसा क्या सुन लिया मेरे बारे में, मेरी प्यारी दोस्त ने"?
"तेरा मंगेतर , बारहवीं क्लास में तीन साल से फेल हो रहा है, क्या यह सच है"?
"हाँ मीनू, यह सच है"।
"क़माल है यार, तू डाक्टरी पढ़ रही है और तेरा मंगेतर बारहवीं फेल"।
"यार यह रिश्ता मैंने तय नहीं किया"।
"तो किसने तय किया"?
"मेरे माँ बापू ने"।
"अरे यार, तेरे माँ बापू भी गज़ब हैं। एक डाक्टर लड़की के लिये बारहवीं फेल लड़का ही मिला उनको"।
"मीनू, इसमें उनका कोई दोष नहीं है। यह रिश्ता कुछ ऐसी परिस्थितियों मेंतय हुआ था कि आज की तारीख में इसमें कुछ कहने सुनने की गुंजाइश नहीं बची है"।
"ऐसी क्या परिस्थितियाँ थी"?
"मेरे बापू और मेरे मंगेतर के बापू बहुत अच्छे मित्र थे। हम दोनों का जन्म एक ही अस्पताल में लगभग साथ साथ ही हुआ था। उसी समय उन दोनों ने अपनी इस दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने के लिये यह रिश्ता तय कर दिया था"।
"पर यार यह तो बिलकुल ही बेमेल रिश्ता है"।
"हाँ,अब तो यह बेमेल ही लगता है"।
"तो तू अब मना कर दे ना इस रिश्ते के लिये"।
""नहीं यार, मैं ऐसा नहीं कर सकती। समाज में मेरे माँ बापू की बात बिगड़ जायेगी"।
"और तेरा कुछ नहीं बिगड़ेगा इस रिश्ते से"?
"असमानतायें और विसंगतियाँ तो हर रिश्ते में ही होती हैं, चाहे वह घर वालों ने तय किया हो या फिर प्रेम विवाह | हर दंपत्ति को जीवन में बहुत सारे अनकहे समझौते करने पड़ते हैं"।
"सुषमा, तू यह सब बातें अपने दिल से नहीं अपने दिमाग से कह रही है, काश तू अपने दिल की बात भी अपनी ज़ुबान पर ला पाती"।
मौलिक एवम अप्रकाशित
हार्दिक आभार आदरणीय जानकी जी।
अच्छी लघुकथा है आ० तेजवीर सिंह जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें. हालाकि ऐसे बेमेल रिश्ते के लिए राज़ी होना आज की तारीख में स्वाभाविक नहीं लगता.
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज भाई जी।
क्या आज के समय में भी इस तरह से चुप रहेती हैं लड़कियां ? सादर |
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