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जैसे ही वह ऑफिस से लौटी एक बार फिर वही नज़ारा उसके आँखों के सामने था| कितना भी समझा ले, न तो बेटा समझता था और न ही बाप, दोनों अपने आप को ही समझदार मानते थे| उसके घर में घुसते ही कुछ पल के लिए दोनों खामोश हो गए और उसकी तरफ फीकी मुस्कान फेंकते हुए देखने लगे|

"कब समझोगे तुम विक्की, मान क्यों नहीं लेते कि वह तुमसे ज्यादा समझते हैं| आखिर पिता हैं तुम्हारे, तुमसे ज्यादा दुनिया देखी है उन्होंने", कहते हुए बैग उसने टेबल पर रखा और सोफे पर अधलेटी हो गयी| राजन ने उसकी तरफ आश्चर्य से देखा, अक्सर तो इसके विपरीत ही होता था, आज ऐसा क्या हो गया|

तब तक विक्की बोल पड़ा "उम्र या अनुभव ज्यादा होने से अगर व्यक्ति समझदार होता तो अपना माली काका हम सबसे समझदार होता माँ"| बात बहुत तीखी थी और उसके दिल पर लग गयी| लेकिन उसने इसको नज़रअंदाज करते हुए कहा "तुलना करते समय लोगों की परिस्थिति और उनके बौद्धिक स्तर को भी ध्यान में रखना चाहिए विक्की"|

"यही तो मैं भी कहता हूँ, पापा जब तब अपने दोस्तों के बेटों से मेरी तुलना करते रहते हैं| मैं उनकी तरह एम बी ए करके इनके बिज़नेस में लग गया होता तो इनकी नज़र में मैं बेहतर होता", विक्की ने अपने पिता की तरफ देखते हुए कहा|

"तो क्या तुम ही समाज सुधार का काम करने के लिए पैदा हुए हो| जब पेट भरा हो तो मुँह से ऐसी बातें खूब निकलती हैं, दो निवाले के लिए तरसते तब समझ में आता", राजन का लहज़ा भी बहुत तल्ख़ हो गया था| विक्की ने एक बार उसकी तरफ देखा, वह सोच नहीं पा रही थी कि अब किसे समझाए|

विक्की अपने पिता की तरफ मुड़ा और बेहद संयत स्वर में बोला "आप जो सोच रहे हैं, वह ठीक नहीं है पिताजी| मैं भी अगर निवाले को तरस रहा होता तो यह सब सोच भी नहीं पाता, भरे हुए पेट से जब मैं उन भूखे लोगों के बीच में जाता हूँ तो उनको बेहतर समझ पाता हूँ, आप नहीं समझेंगे"|

उसके राजन की तरफ देखा, राजन भी शायद समझ रहे थे लेकिन उनका पिता भाव उनको यह मान लेने से रोकता था| वह सोफे से उठी, राजन की तरफ मुस्कुरा कर देखा और विक्की के सर पर हाथ फेरते हुए किचन की तरफ बढ़ गयी|

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on September 25, 2017 at 10:04am

बहुत बहुत आभार आ सुरेन्द्र नाथ सिंह कुश्क्षत्रप जी 

Comment by विनय कुमार on September 25, 2017 at 10:03am

बहुत बहुत आभार आ शेख शहजाद जी इस टिप्पणी के लिए 

Comment by नाथ सोनांचली on September 25, 2017 at 4:59am
विनय जी उम्दा कहानी का प्रयास,अच्छा लगा पढ़ के, बधाई।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 24, 2017 at 1:14am
// भरे हुए पेट से जब मैं उन भूखे लोगों के बीच में जाता हूँ तो उनको बेहतर समझ पाता हूँ, आप नहीं समझेंगे"|// .. बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए सादर हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी। पात्रों के नामों वाले कुछ वाक्यों/वाक्यांशों में थोड़ी अस्पष्टता लग रही है मुझे।

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