आदरणीय साथिओ,
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आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई साहब. आप का कहना बहुत सही व सटीक है.आभार आप का इस सलाह व लघुकथा पर अपना अमूल्य अभिमत देने के लिए.
मुहतरम जनाब ओम प्रकाश साहिब ,प्रदत्त विषय के अनुकूल सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।
आदरणीय तस्दीक अहमद साहब आप का आभार . आप को लघुकथा अच्छी लगी .
बहुत उम्दा भाई ओमप्रकाश क्षत्रिय जी, लाजवाब कथ्य और बेहतरीन पंच लिए इस रचना के लिए आपको बधाई देना तो बनता ही है.. कथा के अंत में // वह रवीना को बताना नहीं चाहती थी कि जिस व्यापारी पति से उस की शादी हुई थी उस का कारोबार में दीवाला निकल गया था. उसे शिक्षिका की नौकरी करनी पड़ी.// इस वाक्य कोभी यदि लेखक के शब्दों में न कह कर सीमा के विचारों में ही दिखाया जाता तो अधिक अच्छा लगता भाई जी, बरहाल प्रदत विषय पर अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय.
आदरणीय वीरेंदर वीर मेहता जी आप की इस सलाह के लिए हार्दिक आभार . इस अमल में लाने का प्रयास करूँगा.
आदरणीय ओमप्रकाश जी आदाब,
संदेशप्रद प्रभावशाली और विषय प्रदत्त लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय ओम प्रकाश जी।मनुष्य के आचार विचार पर समय और परिस्थितियों का कितना गहरा प्रभाव पड़ता है, इसे आपने बखूबी दर्शाया है।विषय को भी सुंदरता से निभाया गया है।सादर।
आदरणीय तेज वीर सिंह जी आप की समीक्षात्मक टिप्पणी पढ़ कर अच्छा लगा. आभार आप का .
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी आप को लघुकथा प्रभावशाली लगी. शुक्रिया आप का .
आपकी रचना से मालूम हुआ कि दिये गये विषय को ऐसा बढ़िया आयाम भी दिया जा सकता है। यहां आपका गंभीर सूक्ष्म अवलोकन और बढ़िया कल्पनाशीलता देखने को मिली है। सादर हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रीय 'प्रकाश' जी। बस यह कहना चाहता हूं कि जब संवाद दो पात्रों के बीच हो रहा है तो रचना में नामों/ 'सीमा- रवीना' की पुनरावृत्तियों से बचा जा सकता था। पूर्ण विराम के स्थान पर बिंदी का प्रयोग क्या यहां भी स्वीकार्य है ?
आदरणीय शेख शहजाद उसमानी जी .आभार आप का लघुकथा पर अपना अभिमत और समय देने के लिए..आप का सुझाव काबिले तारीफ है.
शुक्रिया।
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