आदरणीय साथिओ,
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पहिले बाप कमाई से चीज़ें ख़रीदती थी ,अब आप कमाई से उम्दा कथा के लिये बधाई आद० ओम भाई जी ।
आदरणीय नीता कसार दीदीजी, आप की प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य धरोहर है. आभार इतनी सुंदर प्रतिक्रिय देने के लिए .
बहुत बढ़िया कथा और पंच लाइन हुई है आदरणीय ओमप्रकाश जी| अच्छी सीख! हार्दिक बधाई आदरणीय|
आदरणीय कल्पना भट्टजी, आभार आप का. आप को मेरी लघुकथा और उस की पंचलाइन अच्छी लगी.
आदरणीय सतविंदर जी हार्दिक आभार आप का . आप ने बीचबीच को बीच-बीच लिखने की सलाह दी है यह बहुत उम्दा है. पर , २५ साल से दिल्ली प्रेस की पत्रिका में लिखते हुए इस की आदत पड़ गई . इस कारण न चाहते हुए भी लिख जाता हूँ. यही बात विराम चिह्न के संबंध में भी लागु होती है. शुक्रिया इस बारे में स्मरण करने के लिए.
सुंदर प्रस्तुति ।पंच लाइन बहुत उम्दा ।हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय शशि बंसल जी आप का हार्दिक आभार लघुकथा को समय व समर्थन देने के लिए.
बढ़िया लघुकथा है आ. ओमप्रकाश जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. शीर्षक और बेहतर हो सकता है. सादर.
बेरवाह = बेपरवाह
आदरणीय शशि महेंद्र कुमार जी आप का हार्दिक आभार लघुकथा को समय व समर्थन देने और बेहतर शीर्षक सुझाने के लिए.
प्रदत्त विषय को एक व्यवहारिक आयाम देकर शानदार ढंग से पेश किया है आपने ,कल की गलतियों से सीख ले लेने में ही भलाई है ...हार्दिक बधाई आदरणीय ओमप्रकाश जी
आदरणीय प्रतिभा पांडे जी आप का हार्दिक आभार लघुकथा को समय व समर्थन देने के लिए.
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