For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आशियाँ
            "मैं मानता हूँ सुम्मी। मुझे तुम्हें यहां नहीं बुलाना चाहिए था लेकिन यदि आज मैं अपनी बात नहीं कह पाया तो फिर कभी ऐसा अवसर नहीं आएगा।" ढलती शाम के साये में वह अपनी बचपन की मित्र के सामने खड़ा,अपनी बात कह रहा था।

"मैं जानती हूँ यार, तुम 'जॉब' के लिये बाहर जा रहे हो।" सुम्मी हल्का सा मुस्करायी। "और ये भी जानती हूँ कि तुम क्या कहना चाहते हो? लेकिन हमारे बीच ये कभी संभव नहीं था, और अब तो बिलकुल भी नहीं।"


"नहीं सुम्मी, मुझे अपनी बात पूरी कहने दो।" कहते हुये उसने अपनी नजरें सुम्मी पर टिका दी। "ये सच है कि हमारी 'फ्रेंडशिप' के बीच कब मैं तुमसे मोहब्बत करने लगा, मैं खुद भी नहीं जानता। मगर ये भी सच है कि हमारे परिवारों के बीच अपनापन बना रहे, इसलिए मैंने अपनी मोहब्बत का इजहार नहीं किया। लेकिन अब मैं तुम्हें इस हाल में नहीं छोड़ सकता।" कहते हुये वह घुटने के बल झुक गया। "सुम्मी, मैं तुम से मोहब्बत करता हूँ और तुम्हें हमेशा के लिए अपना बनाना चाहता हूँ।"


"नहीं दोस्त, ये नहीं हो सकता।" तुम्हारी मोहब्बत और भावनाओं की मैं कद्र करती हूँ लेकिन......" कहते हुये सुम्मी कुछ उदास हो गयी। ".....लेकिन मेरे चेहरे पर बिखरे 'उसकी' नफरत के तेजाबी धब्बों पर तुम सहानुभूति दिखाकर बलिदान करना चाहों। ये मुझे स्वीकार नहीं।"


"बलिदान.....!" उसके चेहरे पर दर्द उभर आया। "नहीं सुम्मी ये बलिदान नहीं, मेरा पश्चाताप है। उस 'शैतान' को ये तेजाबी सलाह हँसी-हँसी में मैंने ही दी थी, जब वह मुझसे अपनी 'वैलेंटाइन' को सबक सिखाने की बात करने आया था। मुझे क्या पता था कि मैं अपने ही 'आशियाने' को जलाने की बात कर रहा हूँ।"

"बहुत अच्छे दोस्त। हँसी में ही सही....., पर आज पता लगा कि तुम दूसरों के 'आशियाँ' के बारें में सोचते क्या हो?" कहते हुए सुम्मी पलट चुकी थी।


'मौलिक स्वरचित व् अप्रसारित'

Views: 714

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 15, 2018 at 10:18pm
रचना पर सुंदर टिप्पणी के लिये सादर आभार भाई आशुतोष जी।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 15, 2018 at 10:17pm
हौसला अफजाई के लिये शुक्रिया आदरणीय विजय निकोरे भाई जी।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 15, 2018 at 10:15pm
कथा पर प्रोत्साहन के लिये सादर आभार आदरणीया नीट कसार जी।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 15, 2018 at 10:13pm
रचना पर प्रोत्साहन देती सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार शेख शाहजाद उस्मानी भाई।
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on February 13, 2018 at 6:17pm

सारगर्भीत लघुकथा हुई है आदरणिया वीर जी | हार्दिक बधाई|

Comment by Dr Ashutosh Mishra on February 13, 2018 at 3:21pm

उम्दा प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय वीरेंद्र जी सादर 

Comment by vijay nikore on February 13, 2018 at 1:24pm

अच्छी रचना के लिए हार्द्क बधाई, आ. वीरेन्द्र जी

Comment by Nita Kasar on February 11, 2018 at 3:03pm

शुरू में सामान्य दिखने वाली कथा में बलिदान पश्चाताप ने दोस्ती की असलियत उजागर कर दी,सारगर्भित कथा के लिये बधाई आद० वीरेंद्र वीर मेहता जी ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 10, 2018 at 9:57pm

बहुत बढ़िया पेशकश के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब वीरेंद्र वीर मेहता साहिब।

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on February 10, 2018 at 5:09pm

आदरणीय तेजवीर सिंह, रचना पर सर्वप्रथम प्रोत्साहन देती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. सादर भाई जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन पर आपकी विस्तृत समीक्षा का तहे दिल से शुक्रिया । आपके हर बिन्दु से मैं…"
4 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"प्रस्तुति के अनुमोदन और उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार, आदरणीय गिरिराज भाईजी. "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी

२१२२       २१२२        २१२२   औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा,…See More
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा दशम्. . . . . गुरु

दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल आपको अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है। स्नेह के लिए…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति,उत्साहवर्धन और स्नेह के लिए आभार। आपका मार्गदर्शन…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय सुशील भाई , अच्छे दोहों की रचना की है आपने , हार्दिक बधाई स्वीकार करें "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है , दिल से बधाई स्वीकार करें "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service