For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सुधार - 'द रिफॉर्मेंशन'

सुधार - 'द रिफॉर्मेंशन'
ये सब क्या है तनु, और तुम क्या ढूंढ रही हो?" बहुत सी पुरानी फ़ोटो-एलबम्स के बीच बैठी बेटी को परेशान देख माँ भी परेशान हो गयी।
"कुछ नहीं माँ, बस ये फ़ोटो ढूंढ रही थी।" कहते हुए तनु ने एक हाथ पीछे छुपाते हुए दूसरे हाथ में पकड़ी फ़ोटो माँ के सामने कर दी।
"ये फ़ोटो!...ये तुझे कहाँ मिली?" एकाएक चौंकते हुए माँ ने उससे फ़ोटो छीन ली।
वर्षो पुरानी पारिवारिक फ़ोटो जिसमें नन्ही तनु घर के पुराने नौकर विश्वा और अपने मामा के बीच खड़ी थी लेकिन फ़ोटो कुछ फ़टी होने के कारण वे दोनों स्पष्ट नजर नहीं आ रहे थे।
"सवाल ये नहीं है माँ कि फोटो कहाँ मिली? सवाल ये है... विश्वा अंकल कहाँ है?"
"कई बार बताया हमने तुझे कि वो अपने गाँव.......।"
"नहीं माँ....." तनु ने बात को काट दिया था। "..... आज झूठ नहीं! आज मुझे सच जानना है और ये आप मुझे बताएंगी।" बेटी की निर्णायक आवाज के आगे जाने क्यों आज माँ कमजोर पड़ गयी और एक सच धीमें स्वर में जुबां पर आने लगा। "वो सर्दी की एक कोहरे भरी शाम थी तनु, जब तेरा 'मामा' तुझे ले कर घर के बाहर ही बने पार्क में गया था लेकिन जब काफी देर तक तुम वापिस नहीं लौटीं तो मैंने विश्वा को देखने भेजा था। और उसके कुछ देर बाद ही उन दोनों के चिल्लाने की आवाज आई। जब मैं तेरे पिता के साथ वहाँ पहुँची तो तुम वहाँ अर्ध-बेहोशी की हालत में जख्मी पड़ी थी और विश्वा तुम्हारे मामा को बुरी तरह से मार रहा था। और फिर उसके बाद........।"
"और फिर उसके बाद घर की मान-मर्यादा के लिए उनके झगड़े को आपसी झगड़ा बताकर, विश्वा अंकल को हमेशा के लिए जेल भिजवा दिया गया और उस 'शैतान' को बख्श दिया आप लोगों ने।" माँ की अधूरी बात को पूरा करते हुए तनु ने अपनी नजरें माँ पर टिका दी।
"और क्या करते....., बस उसके बाद मैं कभी लौटकर मायके नहीं गयी।" माँ की नजरें सहज ही झुक हुयी थी।
"नहीं जानती क्या करते आप? लेकिन आज मैं करने जा रही हूँ वह सब, जो करना चाहिए था।"
"क्या करने जा रही हो तुम?" माँ का स्वर कांप गया।
"सुधार माँ! आप के उसी भाई ने फिर किसी मासूम से खेलना चाहा है और मैं आज उस का साथ देने जा रहीं हूँ। शायद अतीत में हुयी गल्ती को सुधारा जा सके।" कहते हुये तनु ने दूसरे हाथ में छिपाया हुआ अखबार माँ के सामने रख दिया जिसमें फोटों सहित उसके मामा की गिरफ़्तारी की खबर छपी थी।
विरेंदर 'वीर' मेहता
(मौलिक स्वरचित व् अप्रसारित)

Views: 552

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on December 24, 2017 at 9:35pm
कथा पर आपकी भाव भरी उपस्थिति और उत्साह बढ़ाती प्रतिक्रिया के लिये तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय समर कबीर भाई जी। सादर।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on December 24, 2017 at 9:33pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई जी रचना पर आपकी प्रशसांत्मक टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार। सादर भाई जी।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on December 24, 2017 at 9:32pm
कथा पर आपकी सुन्दर टिप्पणी के लिये शुक्रिया उस्मानी भाई जी। संभव है कि कथ्य में प्रस्तुत दृश्य आपको फिल्मों से मेल खाता लग रहा हो लेकिन जहां तक विषय (बाल शोषण) की बात कहूं तो मैं इसके लिये आश्वस्त हूँ कि यह दोहराव नही होगा। सादर भाई जी।
Comment by VIRENDER VEER MEHTA on December 24, 2017 at 9:28pm
कथा पर आपकी प्रथम और उत्साह जगाती प्रतिक्रिया के लिये दिल से आभार मोहम्मद आरिफ भाईजान।
Comment by Samar kabeer on December 24, 2017 at 3:18pm

जनाब वीरेन्द्र वीर मेहता जी आदाब,उम्दा लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।तो

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 24, 2017 at 1:44pm

बेहतरीन कथा, शब्दों से प्रशंसा सम्भव नहीं । कोटि कोटि बधाई ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on December 24, 2017 at 9:13am

पुरानी फोटो को केन्द्र पर रखकर कड़वे अतीत और बेहद कड़वे वर्तमान को बाख़ूबी जोड़कर बढ़िया लघुकथा सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय वीरेंद्र वीर मेहता जी। हालांकि यह दृश्य फिल्मों/कथाओं में दोहराया जा चुका है, लेकिन आपकी प्रस्तुति पाठक को बांध कर मंथन करा रही है। सादर।

Comment by Mohammed Arif on December 24, 2017 at 7:45am

आदरणीय वीरेंद्र मेहता जी आदाब,

                              बहुत ही कसावट लिए , अच्छे पात्रानुकूल संवादों से परिपूर्ण और साहस जगाती लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"दोहो *** मित्र ढूँढता कौन  है, मौसम  के अनुरूप हर मौसम में चाहिए, इस जीवन को धूप।। *…"
Monday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"  आदरणीय सुशील सरना साहब सादर, सुंदर दोहे हैं किन्तु प्रदत्त विषय अनुकूल नहीं है. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service