आदरणीय साथिओ,
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//लपक कर पानी की बोलत ले आई।// बोतल होगा न ?
//"मैंने दफ्तर की गाड़ी को बोल दिया है तुम भी चलोगी?"// क्या यह वाकय सही है?
काल खंड लग रहा है सीमा| अच्छी कथा है | दो तीन बार पढनी पड़ी |
हार्दिक बधाई इस लघुकथा के लिए|
दीदी बोलत के साथ स्त्रीलिंग की ही क्रियाएं लगती हैं, फिर प्रस्तुत वाक्य में सुभद्रा ले आई। पानी की बोतल होती है पानी का बोतल नहीं। संवाद है यह//मैंने दफ्तर की गाड़ी को बोल दिया है,तुम भी चलोगी?// संवाद की भाषा पात्र की होती है लेखक की नहीं उस में क्षेत्रीय प्रभाव, आंचलिकता एवं पात्रानुरूपता के अनुसार व्याकरण की अशुद्धि भी क्षम्य है! सादर... कालखंड वीर भाई ने भी कहा पर किस जगह लग रहा है मुझे समझ नही आया?
बोलत या बोतल ? हाँ यह स्त्रीलिंग ही होगा |
☺️☺️
:) सर से डांट पड़ेगी न सीमा ऐसे मस्ती करुँगी तो ? तो अब मैं चली फुर्र्र्रर्र्र
शुक्रिया भाई जी इस पर पुनः विचार करुँगी।
आ. सीमा जी प्रदत्त विषय पर अच्छी लघुकथा हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
विषयानुकूल बढ़िया प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए आदरणीया सीमा जी. सादर.
मैंने यह रचना अभी अभी पढ़ी है। पहले क्या था, पता नहीं! लेकिन अब कालखंड नहीं है, प्रवाह होने के कारण।
कुछ नवीनतम कहने के चक्कर में प्रस्तुतिकरण अधिक प्रभावशाली नहीं रहा। रचना कम शब्दों में कही जा सकती है। शायद पात्र संख्या भी परेशानी में डालती है। विचारों की श्रंख़्ला (फ्लैशबैक) का इस्तेमाल बेहतर कर परिमार्जन किया जा सकता है। एक नया कथानक/ज्योतिष प्रकरण लेकर बढ़िया रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया सीमा सिंह जी।
बहुत खूबसूरती से बुना आपने ये कथानक आ.सीमा जी।शीर्षक पर सटीक बैठती कथा सहज प्रवाह बनाती चलती है।इस सुंदर सृजन हेतु हार्दिक बधाई आपको।
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