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ग़ज़ल : नौकरी है कहाँ बता भाई. (२१२२ १२१२ २२)

लाज माँ बाप की बचा भाई.
हो सके तो कमा के खा भाई.

सौ में नम्बर मैं सौ भी ले लूँगा.
नौकरी है कहाँ बता भाई.

खून का रंग एक है लेकिन.
राज जातों में बाँटता भाई.

नूर भी आफ़ताब से लेता.
चाँद में रोशनी कहाँ भाई.

आज 'हिन्दोस्तान' को देखो.
दीखता है खफा खफा भाई.
(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 21, 2018 at 12:14pm

अच्छी गजल हुयी है हार्दिक बधाई ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2018 at 7:13pm

अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय | 


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Comment by rajesh kumari on May 19, 2018 at 10:21pm

अच्छी ग़ज़ल कही है आदरनीय बहुत बहुत शुक्रिया तस्दीक साहब की इस्स्लाह से  मैं भी सहमत हूँ 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on May 18, 2018 at 8:37pm

जनाब गंगा धर साहिब , ग़ज़ल की अच्छी कोशिश , मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं | sher4 में क़फ़िया  नहीं है , सानी मिसरा यूं कर सकते हैँ

"चाँद में है कहाँ ज़िया भाई" |

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