आदरणीय साथिओ,
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जनाब वीरेन्द्र वीर साहिब, लघुकथा पर आपकी खूबसूरत प्रतिक्रिया और हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
जनाब तस्दीक़ अहमद साहिब आदाब,प्रदत्त विषय को सार्थक करती अच्छी लघुकथा हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
मुहतरम जनाब समर साहिब आ दाब , लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I
अच्छी लघुकथा.
लेकिन आजकल के माहौल में कभी कभी ड्रिंक करने को, पार्टी जाने को, मॉडर्न कपडे पहनने को संस्कारहीनता क्यों कह रहे हैं.
जनाब अजय साहिब, लघुकथा पसंद करने और आपकी हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया I क्यूँकि ये भारत का कल्चर नहीं है
जीवन दृष्टि
स्नेहा स्तब्ध सी अस्पताल में ऑपरेशन थियेटर के बाहर बैठी थी। उसके पति प्रणव को हृदय का घातक दौरा पड़ा था ,और एकमात्र समाधान ऑपरेशन ही था। सब कुछ बहुत ही क्रिटिकल। ऑपरेशन इन्चार्ज था उनका ही बेटा शहर के विख्यात हृदय सर्जन डा० प्रभात। कहा जाता था अगर रोगी उनके हाथ में है तो एक बार यमराज को भी हार मानने के लिए विवश होना ही पड़ता था। पर आज वह भी परेशान सा माथे का पसीना बार बार पोंछ रहा था। ऑपरेशन टेबल पर उसके पिता जो थे उसके जन्मदाता। स्नेहा की आंखों के सामने वे पल घूम गए जब स्नेहा गर्भवती थी और प्रणव उसे लेकर शहर के सभी विख्यात गायनो डॉक्टर के पास चक्कर लगा आया था। विदेश से लौटने पर साथ में आगे उन्नति का बड़ा अवसर साथ लेकर जब उसने स्नेहा के माँ बनने की खबर सुनी तो वह गर्भपात के महीनों की सीमा रेखा पार कर चुकी थी। प्रेम विवाह के कारण वे परिवार से पहले ही त्याज्य घोषित थे। अब अगर वह स्नेहा को माँ बनने का अवसर देता तो विदेश में अपनी चिर वांछित, चिर प्रतिक्षित उन्नति का अवसर खो देता। पर शहर के सभी बड़े डॉक्टरों ने उसे माँ और बच्चे के जीवन से न खेलने के सुझाव सहित लौटा दिया था। "माँ आप थोड़ा आराम कर लीजिए। तीन दिन से बिना सोए दिन रात परेशानी और तनाव झेल रही हैं। मैं हूं न! मेरे रहते पापा को कुछ न होने दूंगा।" कहकर डॉक्टर प्रभात ऑपरेशन थिएटर की ओर जाने को तत्पर हुए। उनकी आंखों की चमक, दृढ़ता और विश्वास भरी भाषा मानों कह रही थी 'मैं उन्हें इस दुनिया से जाने ही नहीं दूंगा।' स्नेहा विमूढ़ सी देखती रह गई। ऐसी जिद, दृढ़ता और तल्खी भरी भाषा उसने पहले भी एक बार अन्य आंखों में देखी थी... इसी बच्चे के लिए ... प्रणव की आंखों में... जो उस समय कह रही थीं ' जो बच्चा आने से पहले ही मेरी तरक्की में व्याधान बन रह है उसे मैं इस दुनिया में आने ही नहीं दूंगा।'
मौलिक एंव अप्रकाशित
आदरणीय कनक हरलालका जी, प्रदत्त विषय पर बहुत ही अच्छी लघुकथा के लिए बधाई स्वीकार करें।
हार्दिक बधाई आदरणीय कनक हरलालका जी।प्रदत्त विषय दृष्टि को चरितार्थ करती बेहतरीन लघुकथा।
हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया आदरणीय तेज वीर जी
हार्दिक आभार आदरणीया नीलम उपाध्याय जी ।
मुह तरमा कनक साहिबा , प्रदत्त विषय पर सुंदर लघुकथा हुई है मुबारकबाद क़ुबुल फरमाएं l
हौसलाअफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया जनाब तस्दीक अहमद खान साहब
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