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​​​​​नारी
सबकुछ है नारीमें लेकिन एक कमी रहजाती है
उसकी सारी खूबियाँ केवल आँसूमें बहजाती है

वज्र के जैसा सीना उसका, अमीधार छलकाती है
सन्तानों के पालनमें ही,
अपना आप खपाती है
उससे ही परिवार पूर्ण फिर,आधी क्यों कहलाती है
सबकुछ है नारीमे लेकिन, एक कमी रहजाती है

हँसती है जब रोना होता, मौन रहे जब कहेना होता
परिणाम सबकी भूलोंका उसको ही क्यों सहेना होता
झूठी इक मुस्कान बस उसकी भेद सभी कहजाती है
सबकुछ है नारीमे लेकिन एक कमी रहजाती है

त्यागकी वह माना मूरत है, करूणा ही बरसाती है
माँ, बेटी, बहू, सास,बहन बन वह संसार चलाती है
सबका संबल बनजाती जो, खुद ही क्यों ढहजाती है
सबकुछ है नारीमें लेकिन एक कमी रहजाती है

जीवनदाता हर माताको, पीडाका वरदान मिला क्यों
जिनपर करती प्राण न्योछावर,उनसेही अपमान मिला क्यों
मर्यादाके नाम न जाने, सबकुछ क्यों सहजाती है

सबकुछ है नारीमें लेकिन एक कमी रहजाती है
उसकी सीरी खूबियँ केवल आँसुमें बह जातीं हैं

( मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment by Kishorekant on August 2, 2018 at 7:23pm

आपका बहुत बहुत आभार बहन बबिता गुप्ताजी ।

नारी अगर आँसु त्यागकर अपनी अपार ऊर्जा  पर विश्वस करे तो वह जीवनके हर काम पुरुष समकक्ष होकर कर सकती है यह तथ्य अब केवल कथन नहीं वास्तविकता बन चूका है !

सादर 

Comment by Kishorekant on August 2, 2018 at 7:08pm

आपका तहे दिलसे शुक्रिया जनाब समर कबीर साहब । प्रेरणा देते रहें ।

सादर ।

Comment by Samar kabeer on August 2, 2018 at 6:32pm

जनाब किशोर कांत जी आदाब,अच्छी कविता हुई,बधाई स्वीकार करें ।

Comment by babitagupta on August 2, 2018 at 1:05pm

नारी महिमा की इस दुर्दशा की चाबी तो पुरुषप्रधान समाज के हाथों में थमी हुई हैं,हार्दिक बधाई उम्दा रचना के लिए आदरणीय सरजी।

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