आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर अभिवादन ।
पिछले 103 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-104
विषय - "पर्यावरण"
आयोजन की अवधि- 14 जून 2019, दिन शुक्रवार से 15 जून 2019, दिन शनिवार की समाप्ति तक
(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.
उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
नज़्म
हाइकू
सॉनेट
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)
अति आवश्यक सूचना :-
रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.
आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.
इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 14 जून 2019, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
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महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
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मंच संचालक
मिथिलेश वामनकर
(सदस्य कार्यकारिणी टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.
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तुकान्त अतुकांत कविता
पर्यावरण
माटी हमारी अकूद सम्पदा,वन्य प्राणी की जीवन रक्षक
स्वास्थ्यवर्धक रोगनिरोधक,वानिकी लगा वने संरक्षक
धरा को रेगिस्तान बनने से बचाना हैं
पेङ-पौधे रोपकर दुल्हन-सा सजाना हैं
सूखती नदियां,उजङते जंगल,जलती धरती, तपता आसमान
विकास की कुल्हाड़ी से होता,संसाधनो का अंधाधुंध दोहन
हरसाल पर्यावरण दिवस मनाकर,ना करे खानापूर्ति
हरदिन प्रकृति से खिलवाड़ ना करे,यह दृढसंकल्प जरूरी
शहरीकरण के नाम पर,जंगल कटने नहीं देगे
प्राणदायिनी वायु को ,प्रदूषित होने नही देगे
मौलिक व अप्रकाशित
हरसाल पर्यावरण दिवस मनाकर,ना करे खानापूर्ति
हरदिन प्रकृति से खिलवाड़ ना करे,यह दृढसंकल्प जरूरी// जी बिलकुल सही कहा आपने। प्रदत्त विषय पर एक अच्छी रचना के लिए हार्दिक बधाई आपको आदरणीया बबीता गुप्ता जी
बहुत सही कहा आदरणीया बबिता गुप्ताजी आपने। पर्यावरण दिवस मनाकर खानापूर्ति ही की जाती है। प्रदत्त विषय पर सूंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई।
आद0 बबिता जी सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बढ़िया प्रयास किया है आपने,, जिसके लिए बधाई निवेदित है।कुछ जगहों पर बिंदी की आवश्यकता नहीं पर आपने लगाया है जैसे
धरा को रेगिस्तान बनने से बचाना है (आपने हैं लिखा है)
पेड़-पौधे रोप कर दुल्हन सा सजाना है (आपने हैं लिखा है)
ना करें (आपने करे लिखा है)
सादर
आदरणीया बविता जी विषयानुकूल अच्छी कोशिश के लिए बहुत बहुत बधाई
शास्त्रीय छंद - कुण्डलिया छंद
विषय - पर्यावरण
आहत है पर्यावरण, देखो रहा कराह।
सोचें अब इसके लिए, किसको है परवाह।।
किसको है परवाह, नित्य अब घटते वन की।
कौन रहा है सोच, नीर के संवर्धन की।।
कोई करो उपाय, मिले जो इसको राहत।
पर्यावरण अतीव, आज है मित्रों आहत।।
मौलिक व अप्रकाशित
बहुत सुन्दर छंद रचना प्रदत्त विषय पर हार्दिक बधाई आपको आदरणीय श्लेष चंद्राकर जी
हार्दिक आभार आपका बबीता जी
प्रदत्त विषय पर पर सूंदर छंद के सृजन के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय श्लेष चंद्राकर जी।
आदरेया नीलम जी हार्दिक आभार आपका पसंद करने के लिए
आद0 श्लेष चंद्राकर जी सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर बढ़िया कुण्डलिया लिखा आपने, इसके लिए बधाई प्रेषित है।
नित्य अब घटते वन की (यहाँ "वन की" शब्द क्या है।) सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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