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बिठाऊँ केइया नाव म- - -- - -

 

छोटी सी या म्हारी  है नाँव,

जादू भरया लागे थारा पाँव |

मनै डर सता रह्यों है राम,

थानै बिठाऊँ केइया नाँव में |

 

म्हारी तो या लकड़ी री नाँव,

थे बणाद्यों भाटा न भी नार |

ई सूं मनै है भारयों ही प्यार

थानै बिठाऊँ कइया नाँव में |

 

म्हारों तो छ यों ही रुजगार,

पालूँ ई सूं सगलों परिवार |

थे छूओं तो बण जासी नार,

बिठाऊँ कइयाँ थानै नाँव में |

 

सुणकर थे या म्हारी बात

हामी ई की भरर्ल्यों आज |

पैली थारा चरण पखारूँ,

तो बिठाऊँ थानै नाव में |

 

मनै तो जाणों नदिया पार,

प्रेम सूं मानूँ थारी मै बात |

ले लौटा अर पग नै धो ले,

बिठाले मैंने थारी नाव में |

 

केवट प्रेम सूं पगा न धोयाँ

पाप जन्मा रा सारा खोया |

धन्य हुयों केवट रो जीवन

बिठाकर अपनी नाव में –

 

संग में सीता लक्ष्मण बैठ्या

नदिया वाकी पार कराई |

उतराई जब देवन लाग्या

बिठाऊँ कईया नाँव में –

 

अरज सुणो म्हारी दातार,

थानै कराई मै नदिया पार |

मैनै थे लेल्यों अब थाके पास

ई भव सागर सूं कराद्यों पार

बिठाऊँ थानै नाव में - - - |

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

लक्ष्मण रामानुज लडीवाला

जयपुर 

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