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धर्मेन्द्र कुमार सिंह's Discussions (2,689)

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सदस्य टीम प्रबंधन

"जिसने दौलत को चुना था तोड़ कर दिल मेरा हाल उसका मेरे हालात से बदतर क्यों है ? बहुत…"

धर्मेन्द्र कुमार सिंह replied Oct 3, 2010 to OBO लाइव तरही मुशायरा-4 (Now Close)

268 Oct 5, 2010
Reply by योगराज प्रभाकर

सदस्य टीम प्रबंधन

"बहुत सुन्दर ग़ज़ल कही है अरुण कुमार पाण्डेय जी ने, उन्हें बहुत बहुत बधाई।"

धर्मेन्द्र कुमार सिंह replied Oct 3, 2010 to OBO लाइव तरही मुशायरा-4 (Now Close)

268 Oct 5, 2010
Reply by योगराज प्रभाकर

सदस्य टीम प्रबंधन

"नवीन भाई एक और बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई।"

धर्मेन्द्र कुमार सिंह replied Oct 1, 2010 to OBO लाइव तरही मुशायरा-4 (Now Close)

268 Oct 5, 2010
Reply by योगराज प्रभाकर

सदस्य टीम प्रबंधन

"बेवफा मेर’ हि दिल में य’ त’रा दर क्यूँ है जी रहा आज भि आशिक वहिं मर मर क्यूँ है। वो…"

धर्मेन्द्र कुमार सिंह replied Oct 1, 2010 to OBO लाइव तरही मुशायरा-4 (Now Close)

268 Oct 5, 2010
Reply by योगराज प्रभाकर

सदस्य टीम प्रबंधन

"तीर थी ये ग़ज़ल तिसपे लम्बी बहुत, जाके दिल में धँसी तो धँसी रह गई।"

धर्मेन्द्र कुमार सिंह replied Sep 18, 2010 to OBO लाइव तरही मुशायरा-3 (Now Closed)

380 Sep 23, 2010
Reply by योगराज प्रभाकर

सदस्य टीम प्रबंधन

"सारी ग़ज़ल ही खूबसूरत है, एक से बढ़कर एक शे’र हैं।"

धर्मेन्द्र कुमार सिंह replied Sep 18, 2010 to OBO लाइव तरही मुशायरा-3 (Now Closed)

380 Sep 23, 2010
Reply by योगराज प्रभाकर

सदस्य टीम प्रबंधन

"वो भले घर से थी, 'चीज़' ना बन सकी| इसलिए, नौकरी ढूँढती रह गयी|३| दोष माँ-बाप का हो,…"

धर्मेन्द्र कुमार सिंह replied Sep 18, 2010 to OBO लाइव तरही मुशायरा-3 (Now Closed)

380 Sep 23, 2010
Reply by योगराज प्रभाकर

सदस्य टीम प्रबंधन

"बहुत खूब सारी ग़ज़ल ही सुन्दर है, किस किस शे’र की तारीफ़ करूँ।"

धर्मेन्द्र कुमार सिंह replied Sep 18, 2010 to OBO लाइव तरही मुशायरा-3 (Now Closed)

380 Sep 23, 2010
Reply by योगराज प्रभाकर

सदस्य टीम प्रबंधन

"ले गया जाते जाते वो हर एक निशाँ बस मेरी आँख में एक नमी रह गई ऐसी बढती गईं ग़म की ता…"

धर्मेन्द्र कुमार सिंह replied Sep 18, 2010 to OBO लाइव तरही मुशायरा-3 (Now Closed)

380 Sep 23, 2010
Reply by योगराज प्रभाकर

सदस्य टीम प्रबंधन

"प्रेम की नाव मँझधार ही रह गई, याद पतवार सी तैरती रह गई। जीत कर ये जहाँ भी समझ ना सक…"

धर्मेन्द्र कुमार सिंह replied Sep 18, 2010 to OBO लाइव तरही मुशायरा-3 (Now Closed)

380 Sep 23, 2010
Reply by योगराज प्रभाकर

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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई तिलक राज जी सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, स्नेह और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए…"
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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय तिलकराज कपूर जी, पोस्ट पर आने और सुझाव के लिए बहुत बहुत आभर।"
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