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OBO लाइव तरही मुशायरा-3 (Now Closed)

इस बार का तरही मिसरा 'बशीर बद्र' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"ज़िंदगी में तुम्हारी कमी रह गई"
वज्न: 212 212 212 212
काफिया: ई की मात्रा
रद्दीफ़: रह गई
इतना अवश्य ध्यान रखें कि यह मिसरा पूरी ग़ज़ल में कहीं न कही ( मिसरा ए सानी या मिसरा ए ऊला में) ज़रूर आये|
मुशायरे कि शुरुवात शनिवार से की जाएगी| admin टीम से निवेदन है कि रोचकता को बनाये रखने के लिए फ़िलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद कर दे जिसे शनिवार को ही खोला जाय|

इसी बहर का उदहारण : मोहम्मद अज़ीज़ का गाया हुआ गाना "आजकल और कुछ याद रहता नही"
या लता जी का ये गाना "मिल गए मिल गए आज मेरे सनम"

विशेष : जो फ़नकार किसी कारण लाइव तरही मुशायरा-2 में शिरकत नही कर पाए हैं
उनसे अनुरोध है कि वह अपना बहूमुल्य समय निकाल लाइव तरही मुशायरे-3 की रौनक बढाएं|
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Replies to This Discussion

यह भी खूब रही, बहुत बढ़िया ,
वाह वाह , नविन भैया, कार काहे कड़ी रह गई, क्या ग़ज़ल कहते है , जबरदस्त ,
जबरदस्त!!! आपका कैमरा सब जगह घूमता है|

फ़र्ज़ अपना पुलिस फिर करेगी अता|
पूछेगी कार काहे खड़ी रह गई||

simply superb
वाह -वाह नवीन जी ,'तंत्र अपना गजब का है मुस्तैद ,तो !
फिर कहाँ कैसी पेचीदगी रह गई!
बहुत खूब .....मुबारक !
क्या बात है ..लाइव मुशायरे में बिलकुल सीधा प्रसारण हो रहा है| नवीन भैया यही तो आपकी खासियत है|
बेहतरीन|
नवीन जी , आपका मुशायरा तो कॉमिक हो गया भाई ... पर मज़ा आया ... :)
जय हो आपकी जो हंसा रहे हो ...
वाह वाह नवीन भाई, जवाब नहीं आपके इस इस मिज़हिया अंदाज़ का भी ! दिल खुश कर दिया आपने !
हास्य का पुट लिये इन शे'रो के साथ ..........
खूबसूरत दुल्हन - बेटी मजदूर की|
आँसुओं को फकत पोंछती रह गयी,
यह शे'र बहुत ही संजीदा कह दिये, बहुत बढ़िया नविन भईया, जबरदस्त,
वाह नवीनजी वाह.. इसे कहते हैं तल्लीनता.. और किसी चाहत को जीना. इस मुशाअरा की रोशनी आपके नाम. मुझे सद्यःप्रस्तुति के शेरों ने कहना न होगा प्रभावित किया है -

>>सब से आगे, वही आज है - दौर में|
मुद्दतों से जो कुचली-दबी रह गयी|३६|
समझ-बूझने ने के इस अंदाज़ को साधुवाद.. उन ’जातियों’ की वास्तविक स्थिति के मुद्दे पर अच्छी-खासी बहस की गुंजाइश है. पर, अनगढ़ ही सही काम तो अवश्य हुआ उनके लिए जो ’मुद्दतों से कुचली-दबी रह गई’ हैं. बहुत अच्छे.

>>बाद गाँधीजी के, यार - इस मुल्क में|
पुस्तकों में ही 'गाँधीगिरी' रह गयी|३७|
बहुत खूब.. वाह-वाह! इस कचोटते हुए तथ्य को सामने लाने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद. हर हल्के में लोग सचाई जानते हैं.
हमने उनसे मतलब साधा..
अच्छा हुआ वो चले गए..

और आपकी ये चालीसा पूरी हुई भी तो किस अंदाज़ में-
>>मेरे 'दिल की तसल्ली' कहाँ गुम हो तुम
जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गयी|४०|
हाय-हाय-हाय!! .. ’’.....कहाँ आवाज़ दे तुमको, कहाँ हो.......”
//बाद गाँधीजी के, यार - इस मुल्क में|
पुस्तकों में ही 'गाँधीगिरी' रह गयी //

कितनी आसानी से कितनी बड़ी बात कह दी अपने, आफरीन !


//मेरे 'दिल की तसल्ली' कहाँ गुम हो तुम|
जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गयी //

तरही मिसरे को ग़ज़ल में इस्तेमाल तो सबने ही किया, लेकिन जिस खूबसूरती से आपने इस शेअर में इसे बांधा है - कमाल हो गया ! नवीन भाई, आपकी ज़रखेज़ कलम और रौशन दीमाग को सलाम करता हूँ ! भगवन सदा आपको नजर-ए-बद से बचाए !
आदरणीय जनाब पुरुषोतम अब्बी "आज़र" जी के द्वारा भेजी गई ग़ज़ल को मैं पोस्ट कर रहा हूँ .........

मेरे सीने में लौ-सी दबी रह गई
आग बुझती नही है जली रह गई

आगे बढ के गले भी लगाया उसे
फाँस काँटे कि दिल में चुभी रह गई

क्यूं खफ़ा किस लिए है बाता दे मुझे
क्या लियाकत में मेरे कमी रह गई

इक इशारे से उसके वो हलचल मची
मेरे दिल की यूं धडकन थमी रह गई

वो रुका ही नहीं और मिला भी कहां
खुद हकीकत बयां बिन कही रह गई

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