परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 107वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब
कैफ भोपाली साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|
"चाँद बता तू कौन हमारा लगता है "
22 22 22 22 22 2
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
(बह्र: मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ महज़ूफ़ 12-रुक्नी )
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 24 मई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 25 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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मुहतरम, 'मेहरबान' कोई शब्द ही नहीं है,सहीह शब्द "मह्रबान" है और इसका वज़्न 2121 ही होता है ।
जी समर जी शुक्रिया, तनाफुर वाला ऐब काफूर हो जायेगा,उपाय करता हूँ।हाँ,मेहरबान पर मेहरबानी करने की जरूरत है।यह अब न कोई नया शब्द है,न अप्रचलित।
उक्त उला को मैं निम्नवत कहता हूँ:
आँखों में इमकान,कहाँ पानी कुछ भी?...
"आँखों में इमकान,कहाँ पानी कुछ भी"
ये ठीक है ।
शुक्रिया।
//हाँ,मेहरबान पर मेहरबानी करने की जरूरत है//
'घाव लगानेवाले मेहरबान जहाँ'
आपको उचित लगे तो इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
"करम करें जब घाव लगाने वाले तो"
फिलहाल मेरी उला मुझे व्यक्त कर रही है,संतोषप्रद है।आपका आभार!
आपकी मर्ज़ी ।
आ मदन जी गजल कहने का अच्छा प्रयास हुआ है बहुत-बहुत बधाइयां
शुक्रिया मित्र।
Manan kumar जी ग़ज़ल अच्छी हुई है बाकी सलाह पर गौर करें
शुक्रिया जी।
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