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अरे वाह ! कथा के अंत ने तो हिला ही डाला। ज़ोर का झटका धीरे से नहीं बल्कि जोर से ही लगा।
थोड़ी बुनावट-कसावट पर समय देतीं तो सोने पर सुहागा ही हो जाता।
अगली बार ...
हार्दिक बधाई आदरणीय रीता गुप्ता जी !दो सगी बहिनों के जीवन शैली की भिन्नता के पीछे छिपा उनका चाल चलन,चरित्र और चेहरा!लोग अपनी झूठी शान बघारने के लिये कैसे नैतिक और अनैतिक समझौते कर लेते हैं!शानदार लघुकथा!
आदरणीय वीरजी धन्यवाद . सकारात्मक टिपण्णी हेतु.
धन्यवाद आदरणीय नील जी , मैं आपके सुझाव पर अवश्य अमल करुँगी.
बहुत ही सारगर्भित लघुकथा है आ० रीता गुप्ता जीI कृत्रिम रंगीनी के चेहरे से नकाब को खुरच खुरच कर अलग कर दियाI हार्दिक बधाई प्रेषित हैI एक दो बातें इस लघुकथा के बारे में अवश्य कहना चाहूँगा:
१. पहली पंक्ति में "दो बहने, एक कोखजायी" में "एक कोखजायी" न होता तो बेहतर होताI
२."अचानक पहाड़ी ढह गई" यह शब्द भ्रम पैदा कर रहे हैं, एकदम ऐसे लगता है कि शायद दोनों बहने किसी पहाड़ी पर कड़ी हैंI "मानो अचानक कोई पहाड़ी ढह गई" करने से क्या स्पष्टता नहीं बढ़ जाएगी?
धन्यवाद आदरणीय सर जी . आपने बेहद सुथरे रूप में विवेचना किया है ,जी धन्यवाद . १- पहली पंक्ति में दो बहने के बाद "एक कोखजायी" , मैंने ये स्पष्ट करने/ जोर देने का प्रयत्न किया की एक ही माँ की दो संतान कितनी भिन्न होते हैं . २- छोटी बहन कुछ देर पूर्व तक अपने तथाकथित सुखों के पहाड़ी पर बैठी बहन को निम्न दृष्टि से ताक रही थी , वह क्षद्म पहाड़ी ढह गयी . मैंने यही कहने का प्रयत्न किया था .
धन्यवाद आदरणीय .
बेहतरीन लघुकथा।दिखावटी चमकीली ज़िन्दगी के रंग का काले बदबूदार आबोहवा में घुलकर बिखर जाने का क्या खूब चित्रण किया है आपने।बधाई स्वीकार करें आदरणीय रीता गुप्ता जी।
माला झा जी धन्यवाद . आपने कथा को वक़्त दिया .
सुन्दर कथा , चकाचौंध के सत्य ने झटका दे दिया अंत में , ढेरों बधाई स्वीकारें आदरणीया रीता जी
धन्यवाद आदरणीय प्रतिभा जी .
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