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बहुत खूब अम्बरीश जी...कितने सुंदर मानवता के भावों को प्रदर्शित कर रही है आपकी ग़ज़ल. बधाई आपको.
''यार झगड़ो न कभी जाति पंथ मज़हब पर,
तुम्हारे दिल में जली आग बुझाई जाये.
मुल्क में मेल अमन चैन प्यार कायम कर,
आज दुनिया को नयी राह दिखाई जाये."
सुन्दर ग़ज़ल ,,मतला और मक़्ता का ज़वाब नहीं।
अम्बरीष जी को बधाई।
वो भी अपना न लें अन्याय के आगे अनशन,
सारे बच्चों को यही बात सिखाई जाये.//
नौबत यहाँ तक आन पहुंची की भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ बच्चों तक तो तैयार करना पड़ रहा है. बहुत सुन्दर रचना, बधाई स्वीकार करें.
देखो दुनिया में ये तकदीर अहम है यारों,
छोड़ इसको यहीं तदवीर बनाई जाए.
bahut hi badhiya khayaal...bahut badhai..Ambarish bhaiya..
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